मित्रों, केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार, ग्रामीण विकास पर सब का जोर है. गांवों के विकास से ही देश का विकास संभव है, यह सभी जानते हैं. देश की 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, यह सच भी सब को पता है. जाहिर है कि विकास के सवाल पर जब भी बात होगी, गांव उसका सबसे बड़ा विषय होगा. आजादी से अब तक गांवों के विकास के लिए सरकार ने अनेक...
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मई दिवस की कहानी
मज़दूरों का त्योहार मई दिवस आठ घण्टे काम के दिन के लिए मज़दूरों के शानदार आन्दोलन से पैदा हुआ। उसके पहले मज़दूर चौदह से लेकर सोलह-अठारह घण्टे तक खटते थे। कई देशों में काम के घण्टों का कोई नियम ही नहीं था। ”सूरज उगने से लेकर रात होने तक” मज़दूर कारख़ानों में काम करते थे। दुनियाभर में अलग-अलग जगह इस माँग को लेकर आन्दोलन होते रहे थे। भारत में भी...
More »विकास मॉडलों के शोर में गुम मजदूर- रौशन किशोर/जीको दासगु्प्ता
चुनावी बहस-मुबाहिसों में विकास की चर्चा तो खूब है, लेकिन इस विकास का आधार और देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा मजदूर कहीं प्रमुख मुद्दा नहीं है. घोषणापत्रों में श्रमिकों के मसलों को शामिल तो किया गया है, लेकिन उनके लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है. देश में मजदूर वर्ग निरंतर शोषण और दमन का शिकार बनता रहा है. ‘मई दिवस’ के मौके पर मजदूरों से जुड़े मसलों को रेखांकित...
More »मुद्दे ही प्रतीक बन गए- दीपांकर गुप्ता
चुनावी विमर्शों में 'व्यक्तित्व बनाम मुद्दे' की बहस होती रही है। मगर चुनाव व्यक्तित्व के आधार पर लड़ा जाना चाहिए, या मुद्दों के आधार पर, यह सवाल ज्यों का त्यों बना हुआ है। हमारे देश में व्यक्तित्व आधारित राजनीति नई बात नहीं है। बीच-बीच में ऐसे दौर जरूर आए, जब व्यक्तित्व का जोर कम हुआ, मगर फिर इसने वापसी भी की। पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हों, या इंदिरा गांधी, या...
More »गांव-पंचायत की उपेक्षा से कमजोर होगा लोकतंत्र
एक रिपोर्ट के अनुसार 15वीं लोकसभा में 315 सांसद ऐसे हैं जो करोड़पति हैं. जबकि 14वीं लोकसभा में ऐसे सांसदों की संख्या 156 थी. 14वीं से 15वीं लोकसभा तक आते आते ऐसे सांसदों की संख्या में करीब 102 प्रतिशत की वृद्धि हो गई. इन सांसदों में वैसी पृष्ठभूमि के सांसद गुम हो रहे हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों से ताल्लुक रखते थे. कॉरपोरेट क्षेत्र से जुड़े और करोड़पति सांसदों से इतर...
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