आजमगढ़ [जासं]। अन्याय सहना उन्होंने नहीं सीखा। फकत सात साल की थीं जब उन्होंने कदाचार के खिलाफ बिगुल फूंका। कीमत बड़ी चुकानी बड़ी अर्थात पढ़ाई छूट गयी लेकिन हौसले का साथ न छूटा। कदाचार के खिलाफ जंग जारी रही और वर्ष 2005 में कक्षा 2 पास यह महिला बनीं अपने गाव की मुखिया। बात हो रही है फूलमती त्रिपाठी की। वह अजमतगढ़ विकास खण्ड की ग्राम पंचायत कादीपुर रजादेपुर की प्रधान हैं। मायका है...
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बजट 2010: बदलाव के ट्रैक पर एजुकेशन सिस्टम
नई दिल्ली।। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी का कहना है कि सरकार मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के कानून की मदद से देश के शिक्षा परिदृश्य को पूरी तरह बदलने को तैयार है।...
More »अंधेरे में ज्ञान का जुगनू
राजस्थान के इस गांव में नाम भर को पढ़ा लिखा एक चरवाहा, बिना किसी सरकारी या दूसरे सहयोग के रात के अंधेरे में ज्ञान की रोशनी फैला रहा है. हरडी गांव अजमेर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. आसपास के तमाम दूसरे गांवों की तरह ही हरडी भी बिजली, पानी, सड़क जैसे विकास के न्यूनतम प्रतिमानो से वंचित है. गड़रिया जाति बाहुल्य इस गांव के 12 किलोमीटर के दायरे में कोई प्राथमिक स्वास्थ्य...
More »दशा ऐसी तो कैसे जले शिक्षा की अलख
इलाहाबाद। सर्व शिक्षा अभियान का नारा है सब पढ़ें, सब बढ़ें। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य बच्चों में शिक्षा की अलख जगाना है। सरकार ने भी इसकी सफलता के लिए कई कदम उठाए। शिक्षाधिकारियों समेत डीएम और मंडलायुक्त को भी इस ओर इंगित किया गया, बावजूद यह व्यवस्था शहर में ही पटरी से उतर गई है। इसका जीता जागता उदाहरण मोहत्सिमगंज में देखने को मिला। यहा एक ही परिसर में पूर्व माध्यमिक कन्या विद्यालय...
More »गुजरात में नहीं थम रहा छुआछूतः रिपोर्ट
अहमदाबाद. गुजरात में दलितों के साथ जाति आधारित भेदभाव बदस्तूर जारी है। एक अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात में दलितों के साथ छुआछूत लगातार जारी है। दलित नित्य प्रति के कामों जैसे शिक्षा तथा चिकित्सा सुविधा के अलावा वे कहां रह सकते हैं। कौन सा काम कर सकते हैं आदि में भी भेदभाव किया जाता है। इस अध्ययन रिपोर्ट को दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले राज्य के सबसे...
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