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भ्रष्टाचार से लाचार लोकतंत्र!-- चंदन श्रीवास्तव

भ्रष्टाचार की बातें तो बहुत हैं, लेकिन शिकायतें बड़ी ही कम हैं! अब इस उलटबांसी की व्याख्या कैसे हो? क्या हम यह मान लें कि चलो फिर से इस नियम की पुष्टी हुई कि भारत विरोधाभासों का देश है? सार्वजनिक जीवन में नजर आनेवाला विरोधाभास दोहरा अर्थ-संकेत होता है. उसका एक इंगित है कि हमारा तंत्र पाखंड से भरा है और दूसरा इंगित कि अन्याय आठो पहर आंखों...

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रुके सियासी चंदे का गोरखधंधा - भवदीप कांग

रु पूर्णिमा के मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक गुरुदक्षिणा स्वरूप कुछ राशि अपने इस संगठन को भेंट करते हैं। यह राशि (जो कुछ सिक्के भी हो सकते हैं या हजारों रुपए के नोट भी) एक सादे लिफाफे में दी जाती है, जो संघ कार्यालय के संचालन के लिए होती है। इसी से प्रचारकों का खर्चा भी निकलता है।   अब मोदीजी के 'कैशलेस भारतमें क्या ऐसी दान राशि सिर्फ चेक...

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जलवायु: मौसम का पक्ष-विपक्ष-- अखिलेश आर्येंन्दु

धूप-छांव, गरमी-बरसात का आना-जाना प्राकृतिक संतुलन के लिए जरूरी है। धरती पर जीवन के लिए ये मौसम उतने ही जरूरी हैं जितना की हमें जिंदा रहने के लिए जल और भोजन। यों तो हमारी जलवायु के हिसाब से बारह महीने में तीन मौसम-जाड़ा, गरमी और बरसात प्रमुख हैं। उनका अपना अलग रंग-ढंग है। हर मौसम की अपनी खामी और खूबी होती है। सभी मौसमों में हमें कुछ सुखद अहसास होते...

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पानी की कहानी कहने वाले पर्यावरण के गुरु का जाना

अनुपम भाई सरलता, सहजता और विनम्रता की ऐसी मूर्ति थे जो प्रकृति, पानी, पर्यावरण और मानवता के बीच एक गहरा संबंध बनाते रहे। वे हमेशा ही बड़ी से बड़ी सच्चाई को बिना किसी से डरे, बिना किसी लालच और द्वेष के निष्पक्ष होकर बोल देते थे। मैंने अपने जीवन में उनके जैसे सहज, सरल किंतु बेबाक लोग कम ही देखे हैं।   अनुपमजी ने अपनी जीवन-यात्रा पानी व पर्यावरण को समर्पित कर...

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आदिवासियत का पंचशील-- नसीरुद्दीन

किसी खास समाज, समूह या समुदाय को वहां के मजबूत और सत्ता पर पकड़ रखनेवाले लोग किस नजर से देखते हैं, इसे समझने का एक पैमाना यह भी हो सकता है कि ये समूह किन मुद्दों के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं.   देश के आदिवासी इलाकों से कुछ-कुछ दिनों पर जद्दोजेहद और जल-जंगल-जमीन की हिफाजत की गूंज सुनाई देती है. ताजा गूंज झारखंड से सुनाई दे रही है. पिछले दिनों...

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