पिछले कुछ समय से भारतीय खानपान के लोकतंत्र में मांसाहार के खिलाफ शाकाहार के स्वयंभू रक्षकों ने एक अजीब सा धावा बोल रखा है। भारतीय परंपरा की शुचिता बनाए रखने की अपील करते हुए वे देश के सभी लोगों को जबरन मांसाहार से शाकाहार की तरफ हांक रहे हैं। संभव है कि उनको किसी हद तक शाकाहारी धड़े के मन की बनावट की कुछ जानकारी हो, किंतु वे इस महत्वपूर्ण...
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बेड़ियों को तोड़ती मुस्लिम महिलाएं - नाइश हसन
मशहूर शायर फैज अहमद फैज ने अरसा पहले अपनी एक नज्म के जरिए औरतों को झकझोरने की कोशिश की थी। नज्म कुछ यूं है, 'बोल कि लब आजाद हैं तेरे, बोल जुबां अब तक तेरी है। उनकी इस नज्म ने महिलाओं पर गहरा असर डाला। यह नज्म जगह-जगह गुनगुनाई जाने लगी और अब इसका असर भी दिखने लगा है। यूं तो औरतों पर बंदिशों की कमी नहीं, लेकिन मुस्लिम समुदाय में...
More »अल्पसंख्यक स्कूलों ने दी दिल्ली सरकार की नर्सरी दाखिला नीति को चुनौती
सरकारी जमीन पर बने अल्पसंख्यक स्कूलों को भी केजरीवाल सरकार की ओर से नर्सरी कक्षा में दाखिले के लिए जारी दिशा-निर्देश नहीं भाया। अल्पसंख्यक स्कूलों ने भी दाखिले के लिए जारी इस दिशा-निर्देश को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए इसे रद्द करने की मांग की है। जस्टिस मनमोहन ने इस मामले में केजरीवाल सरकार को नोटिस जारी कर 19 जनवरी तक जवाब देने को कहा है। हालांकि उन्होंने अल्पसंख्यक स्कूलों की...
More »सितारों से संवाद पर बंदिशें-- उर्मिलेश
इसी 17 जनवरी को रोहित वेमुला के हमारी दुनिया से विदा हुए एक साल पूरे हो जायेंगे. हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रतिभाशाली शोधछात्र ने अपनी आत्महत्या, जो वस्तुतः किसी हत्या से भी ज्यादा नृशंस थी, से ऐन पहले एक मार्मिक पत्र लिखा. रोहित ने कहा था- ‘मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था. विज्ञान पर लिखनेवाला, कार्ल सगान की तरह. लेकिन, अंत मे मैं सिर्फ यह पत्र लिख पा रहा...
More »धर्म और जाति पर न हो वोट--- विश्वनाथ सचदेव
‘अभी रुग्ण है तेरे-मेरे जीने का विश्वास रे', इस पंक्ति में कवि ने जीने के विश्वास को परिभाषित करते हुए उन जनतांत्रिक मूल्यों-सिद्धांतों का हवाला दिया था, जिनके आधार पर हमने स्वतंत्रता पाने के बाद एक पंथ-निरपेक्ष, समतावादी राष्ट्र-समाज के निर्माण का संकल्प लिया था. यह त्रासदी ही है कि वैसा समाज, वैसी व्यवस्था आज भी एक सपना ही है. आज भी हमारा देश धर्मों, जातियों, वर्गों में बंटा हुआ...
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