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विद्रोह के केंद्र में दिन और रातें

जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ता और ईपीडब्ल्यू के सलाहकार संपादक गौतम नवलखा तथा स्वीडिश पत्रकार जॉन मिर्डल कुछ समय पहले भारत में माओवाद के प्रभाव वाले इलाकों में गए थे, जिसके दौरान उन्होंने भाकपा माओवादी के महासचिव गणपति से भी मुलाकात की थी. इस यात्रा से लौटने के बाद गौतम ने यह लंबा आलेख लिखा है, जिसमें वे न सिर्फ ऑपरेशन ग्रीन हंट के निहितार्थों की गहराई से पड़ताल करते हैं, बल्कि माओवादी...

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इन बंजारों की धरती कहां है -- शिरीष खरे

एक बार बीड़ जिले के पाथरड़ी तहसील में कहीं चोरी हुई. कई महीने बीते, मगर चोर का अतापता न चला. आष्टी तहसील से थोड़ी दूरी पर चीखली गाँव हैं. इसी गाँव के पास घूमते-फ़िरते रहवसिया नाम का पारधी परिवार आ ठहरा. बस फिर क्या था, पुलिस ने उसे ही इतनी दूर की वारदात में अंदर डाल दिया. जहाँ रहवसिया दो महीनों तक जेल में रहा, वहीं गाँव में ऊँची जाति...

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महिला श्रमिकों की पीड़ा

नई दिल्ली [प्रदीप कुमार मील]। एक अनुमान के मुताबिक विश्व के कुल काम के घटों में से महिलाएं दो तिहाई घटे काम करती हैं, लेकिन वह केवल 10 फीसदी आय ही अर्जित करती हैं और विश्व की केवल एक फीसदी संपत्ति की ही मालकिन हैं। भारतीय संदर्भ में महिला श्रम या श्रम में महिलाओं की भागीदारी पर बात करते समय पिछले कुछ वर्षो में तीन विषेष तथ्य सामनें आतें...

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एहू साल अंगना में नाव चली बबुआ

मुजफ्फरपुर [जाटी]। एहू साल अंगना में नाव चली बबुआ, खेत पथार डूबी, जानो बची कि ना, भगवाने मालिक बारन। यह दर्द है गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला, कोसी, भुतही और अधवारा समूह की नदियों के किनारे बसे उन सैकड़ों गांवों के हजारों ग्रामीणों का, जिनके बचाव के लिए कभी कुछ नहीं किया गया। इस बार भी वे खुद को लावारिस ही पा रहे हैं। वैशाख में ही जेठ की तपती गरमी के बावजूद लोग संभावित बाढ़...

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