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जानिए कैसे काम करती है कैलाश सत्यार्थी की संस्था 'बचपन बचाओ आंदोलन'

बचपन बचाओ आंदोलन ' (बीबीए) नामक एनजीओ चलाने वाले कैलाश सत्यार्थी को शांति का नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद जरूरी हो जाता है कि सिर्फ पुरस्कार की ही चर्चा ना की जाए बल्कि उनके संघर्ष और कामों पर भी चर्चा की जाए. 1954 में जन्मे सत्यार्थी से जब पूछा गया कि आपको यह पुरस्कार मिलने के बाद कैसा लग रहा है तो उनका सीधा सा जबाव था जैसा आप लोगों को...

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एक गांव जहां लड़कों से दोगुनी लड़कियां

वर्ष 2011 की जनगणना में हरियाणा में छह वर्ष तक के बच्चों के लिंगानुपात का जो आंकड़ा सामने आया वह चिंता में डालने वाला था. 1000 लड़कों पर महज 834 लड़कियां थीं. राज्य में यह स्थिति पिछले कई दशकों से है. लेकिन, कुछ गांवों से ऐसी खबरें आयी हैं जो हालात बदलने की उम्मीद पैदा करती हैं. लिंग अनुपात के मामले में देश में सबसे बुरी स्थिति हरियाणा की है. यहां...

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स्त्री सशक्तीकरण की शर्तें- विकास नारायण राय

जनसत्ता 16 जून, 2014 : बलात्कार और हत्या पर राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए बदायूं के कटरा सादतगंज गांव में पहुंचने वाले राजनीतिकों को उपेक्षा से नहीं लेना चाहिए। न इस जमात के दूर से ऊलजलूल अर्द्ध-सत्य बोलने वालों को। दरअसल, इन सतही कवायदों में स्त्री-सशक्तीकरण के पैरोकारों के लिए एक निहित संदेश है- स्त्री-विरुद्ध हिंसा के मसलों पर समग्र राजनीतिक एजेंडे की सख्त जरूरत है। मीडिया, एनजीओ और कानून...

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झारखंड में मानव तस्करी और पलायन बड़ी समस्या

रांची: कैंपेन फॉर राइट टू एजुकेशन इन झारखंड और चाइल्ड रिलीफ एंड यू द्वारा झारखंड में बाल तस्करी की रोकथाम विषय पर राज्यस्तरीय परामर्श का आयोजन एसडीसी में किया गया. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित सीआइडी आइजी संपत मीणा ने कहा कि राज्य में महिलाओं और बच्चों का पलायन और ट्रैफिंकिंग बड़ी समस्या है़.  इससे बचने के लिए जागरूकता जरूरी है़  रोजगार के लिए गांव से बाहर जाने वालों का...

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नमक के नए दारोगा- विकास नारायण राय

जनसत्ता 11 अप्रैल, 2014 : संसाधन घोटालों (कोयला, लोहा, गैस, तेल, रेत, जल, जंगल, जमीन) से बोझिल राजनीतिक वातावरण में, देश के शासन का ईमानदारी से संचालन, 2014 के चुनावी घोषणापत्रों की एक प्रमुख थीम है। तीस हजार करोड़ रुपए चुनाव में दांव पर लगाने वाले राजनीतिकों में होड़ है कि अगला ‘नमक का दारोगा’ कौन बनेगा! नमक जैसे सुलभ पदार्थ को औपनिवेशिक लूट का जरिया बनाए जाने की पृष्ठभूमि...

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