किसान खुशहाल हो गये! अब किसान नेता अपने-अपने अांदोलन वापस ले लें. सूखे के अांकड़ों की ऐसी बारिश हुई है कि धरती अाप्लावित हो गयी है. प्रधानमंत्री ने कबीर-भूमि पर जाकर शताब्दियों का ऐसा कॉकटेल बनाया कि इतिहास अौर इतिहासकार सभी चारों खाने चित हो गये. उन्होंने ‘मेरे किसान भाइयों' की तरफ नजर घुमायी अौर एक ऐसी लकीर खींच दी कि किसान इधर अौर समस्याएं उधर रह गयीं. किसानों को...
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गरीबी में गिरावट संतोषजनक--- अजीत रानाडे
अंतरराष्ट्रीय रूप से सुप्रसिद्ध ब्रूकिंग्स संस्थान की एक रिपोर्ट यह बताती है कि भारत में गरीबी में नाटकीय गिरावट आयी है. मई 2018 के आकड़े लिये जाएं, तो भारत में घोर दरिद्रता की स्थिति में रहनेवालों की संख्या 7.30 करोड़ है, जबकि नाइजीरिया में ऐसे लोगों की तादाद 8.70 करोड़ है. ऐसा पहली बार हुआ है कि अपनी जनसांख्यिक विशालता के बावजूद भारत में अत्यंत निर्धनों की संख्या विश्व में...
More »जरूरी है भाषाओं का संरक्षण-- वरुण गांधी
पेरू में अमेजन घाटी में तौशीरो भाषा बोलनेवाला सिर्फ एक शख्स बचा है. इसी इलाके में रेजिगारो भाषा भी ऐसे ही अंजाम की ओर बढ़ रही है. पिछली दो सदियों में अंग्रेजी का जिन इलाकों में भी विस्तार हुआ, स्थानीय भाषाओं का सफाया हो गया. दो सदियों के दौरान ऑस्ट्रेलिया में 100 स्थानीय भाषाएं खत्म हो गयीं. भारत में भी यही कहानी दोहरायी जा रही है. 1961 की जनगणना में...
More »चंपारण से निकला रास्ता- राजू पांडेय
चंपारण सत्याग्रह नील की खेती करने वाले किसानों के अधिकारों के लिए संगठित संघर्ष के रूप में विख्यात है। इसके एक सदी बाद भी देश का किसान बदहाल है। 2010-11 के आंकड़ों के अनुसार, देश के 67.04 प्रतिशत किसान परिवार सीमांत हैं जबकि 17.93 प्रतिशत कृषक परिवार लघु की श्रेणी में आते हैं। सरकार ने संसद को राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण द्वारा जुलाई 2012 से जून 2013 के संदर्भ में संकलित...
More »होनहारों को उनका हक चाहिए-- शशि शेखर
कर्मचारी चयन आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं में हुई धांधली परत-दर-परत खुलती जा रही है। यही हाल सीबीएसई बोर्ड की परीक्षाओं में हुए गड़बड़झाले का है। इस तरह के पुराने मामले के अन्वेषण के अगुआ रहे एक अवकाश प्राप्त अधिकारी का मानना है कि यह ऐसी दलदल है, जिसमें जितना खोदो, उतना कीचड़ हाथ आएगा। देश के नौनिहालों के भविष्य से खिलवाड़ का यह सिलसिला पुराना है। एक आपबीती बताता हूं-...
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