उत्तर प्रदेश के नौजवानों ने पहली बार सत्ता के मुख्य केंद्र राज्य सचिवालय को झकझोर दिया है। पीएच. डी., पोस्ट ग्रेजुएट, इंजीनियरिंग और एमबीए डिग्री धारक समेत करीब तेईस लाख युवक-युवतियों ने चपरासी के चार सौ से कम पदों के लिए फॉर्म भरा है, जिसके लिए सरकारी तौर पर मात्र पांचवीं पास की योग्यता निर्धारित है। सरकार का माथा चकरा रहा है कि चयन की कौन-सी प्रक्रिया अपनाई जाए? इससे...
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दर्शकों तक पहुंचने की कठिन डगर - मृणाल पांडे
किसी भी लोकतांत्रिक देश की सरकार और आम आबादी के बीच सहज-सतत संवाद हर कल्याणकारी राज्यव्यवस्था की बुनियादी जरूरत होती है। जब सरकार ने (बीसवीं सदी के अंतिम दशक में) सूचना प्रसार मंत्रालय की मातहती में चलाई जाती रही रेडियो-टीवी की प्रसारण सेवाओं को प्रसार भारती नामक स्वायत्त इकाई को सौंपा था तो शायद उसके पीछे उसके मार्फत राज्य व नागरिकों के बीच एक भरोसेमंद-मजबूत पुल बनाने का ही लक्ष्य...
More »मोदी सरकार के 1 साल( विशेष आलेख, आलेख प्रभात खबर)
पिछले आम चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी का एक प्रमुख नारा था- ‘सबका साथ-सबका विकास'. अपने इस वादे पर अमल करते हुए सरकार ने पिछले एक साल में आम आदमी की समृद्धि और उन्हें आर्थिक सुरक्षा मुहैया कराने के उद्देश्य से कई नयी योजनाएं शुरू कीं. कुछ पिछली योजनाओं में भी तब्दीली करते हुए उन्हें नये नाम और प्रारूप में शुरू किया गया. जन-धन, बीमा और पेंशन आदि से जुड़ी...
More »सरकार नहीं, समाज गढ़ता है श्रेष्ठ संस्थान- हरिवंश
अमेरिका के जितने भी महान विश्वविद्यालय हैं, उन्हें बनाने के लिए बड़े-बड़े पूंजीपतियों ने अपनी जिंदगी भर की कमाई लगा दी. एक झटके में करोड़ों डॉलर का दान कर दिया. क्या भारत में पैसेवालों की कमी है? नहीं. फिर क्यों यहां ऐसे संस्थान नहीं खड़े होते? क्यों हम लोग हर चीज के लिए सरकार का मुंह देखते रहते हैं. सरकार अपना काम करे, यह जरूरी है. पर समाज और लोगों की...
More »जनता का सम्मान करना सीखिए- नीलांजन मुखोपाध्याय
हर पेशेवर आदमी की सफलता के लिए औजार या हुनर और कच्चे माल की जरूरत पड़ती है। मसलन, जूता तैयार करने वाली कंपनी को औजार के रूप में श्रमिक और कच्चे माल के तौर पर चमड़े और दूसरी चीजों की आवश्यकता पड़ती है। भारत में राजनीति भी एक पेशा है, और इसमें सफल होने के लिए चिंतन क्षमता, रणनीति बनाने की काबिलियत, अभिव्यक्त कर पाने की शक्ति और प्रचार में...
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