अनियोजित शहरीकरण आज किसी एक प्रदेश की नहीं, बल्कि पूरे देश की समस्या है। आजादी के सत्तर सालों में जहां कस्बे शहर, शहर नगर और नगर महानगर बनते चले गए, वहीं गांवों की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया। गांव आज भी गांव ही है। वही आबोहवा, आंचलिक संस्कृति, एक-दूसरे के सुख-दुख में हिस्सा बंटाने का आत्मीय भाव, अभाव में भी संतुष्टि और इस सबसे बढ़ कर छोटी-सी घटना...
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बाल विवाह उन्मूलन की राह-- रीता सिंह
पिछले दिनों बिहार के साढ़े चार करोड़ लोगों ने मानव शृंखला बना कर दहेज और बाल विवाह के विरुद्ध प्रतिबद्धता जाहिर की। जिस तरह राज्य की राजधानी पटना से लेकर गांव-कस्बों में कतारों में खड़े करोड़ों लोगों ने इस सामाजिक बुराई को खत्म करने का संकल्प व्यक्त किया वह यह रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि जनजागरण के जरिए सामाजिक बुराइयों को मिटाया जा सकता है। एक साल पहले...
More »पाठक संख्या की मीनारें-- विनय जायसवाल
भारतीय पाठक सर्वेक्षण के ताजा आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से लगातार ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि टेलीविजन के बाद आॅनलाइन मीडिया और अब सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की वजह से अखबारों की पाठक संख्या में तेजी से गिरावट आएगी, लेकिन इस सर्वेक्षण से साफ है कि भारत में अखबारों की बिक्री लगातार बढ़ रही है। 2014 में अखबार के पाठकों की संख्या...
More »बुढ़ापे में मिट गए अंगुलियों के निशान, आधार बिना तरसे बुजुर्ग
बुढ़ापा किस कदर लोगों का जीना मुहाल कर देती है, इसे जानना हो तो बरेली की इस खबर का रुख करें. यहां के बृद्धाश्रमों में लोगों की आजकल निंद हाराम हो गई है. क्योंकि इनके पास आधार न होने के कारण इन्हें तो कोई सुविधा मिल पा रही है और न ही पेंशन. अगर कोई बुजर्ग आधार बनवाना भी चाहता है तो फिंगरप्रिंट मशीन उनके अंगूलियों के निशान नहीं ले...
More »शोर ज्यादा, मतलब की बातें कम-- अभिजीत मुखोपाध्याय
जैसी कि उम्मीद थी, केंद्रीय बजट-कम-से-कम बजट भाषण- में खेती और ग्रामीण क्षेत्र पर बहुत ही अधिक फोकस किया गया है. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लागत से डेढ़ गुना करने का फैसला 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने के सरकार के दीर्घकालिक महत्वाकांक्षा के अनुरूप है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने भाषण में कहा है कि नीति आयोग द्वारा तैयार प्रणाली के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य तय...
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