-लोकवाणी, सुशांत सिंह के साथ खड़े होने से बचिए! हमें आत्महत्या के विरुद्ध होना है. उसके साथ नहीं.हमारी समस्या यह है कि हम जीवित व्यक्ति के साथ कभी समय पर खड़े नहीं होते, लेकिन मातम के वक्त समय पर पहुंच जाते हैं. -दयाशंकर मिश्रा सुशांत सिंह राजपूत इस दुनिया का हिस्सा नहीं हैं. बिहार के पूर्णिया से मुंबई तक उनका सफर सपने सरीखा रहा. उनकी मृत्यु पर सब चकित हैं. ऐसे याद कर...
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उपभोग की आदतों में बदलाव से हो सकती है भू-मंडल और जीव-मंडल की रक्षा!
-न्यूजक्लिक, पिछले कुछ महीनों से हममें से उन लोगों को जिनके पास कई चीजों के उपभोग कर सकने लायक पर्याप्त क्रय शक्ति मौजूद है, उन्हें इस तथ्य के प्रति अवगत कराया होगा कि वे इसे कम करके भी जी सकते हैं। अब वे उत्पाद “फिलहाल उपलब्ध” टैब के साथ एक बार फिर से वापस आ चुके हैं, तो क्या ऐसे में हमें फिर से पुरानी आदतों को अपना लेना चाहिये? आख़िरकार...
More »टूटी हुई खाद्य प्रणाली और किसानों के लिए फ्री मार्केट का औचित्य?
-गांव कनेक्शन, "1980 के दशक में किसान प्रत्येक डॉलर में से 37 सेंट घर ले जाते थे। वहीं आज उन्हें हर डॉलर पर 15 सेंट से कम मिलते हैं," यह बात ओपन मार्केट इंस्टीट्यूट के निदेशक ऑस्टिन फ्रेरिक ने कंजर्वेटिव अमेरिकन में लिखी है। उन्होंने इस तथ्य के जरिये इशारा किया कि पिछले कुछ दशक में किसानों की आमदनी घटने की प्रमुख वजह चुनिंदा बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बढ़ती आर्थिक ताकत है।...
More »प्रवासी मेहनकशों का लॉकडाउन में हुआ उत्पीड़न और भुला दिए गए कुछ नैतिक सवाल
-जनपथ, बारह साल की जमलो मकदम के परिवार को हम क्या समझा सकते हैं? क्या विवरण और स्पष्टीकरण दे सकते हैं उसके अंत का? जमलो, एक आदिवासी बालिका, तेलंगाना में मिर्चों के खेतों में काम करती थी। मूल रूप से वह छत्तीसगढ़ की थी। जब लॉकडाउन हुआ तो उसका काम बंद पड़ गया। निर्वाह के लिए कोई रास्ता, कोई आय नहीं थी, तो कुछ सहकर्मियों के साथ वह वापिस अपने गांव को...
More »अनलॉक 1: काम पर लौटने को लेकर हम इतने डरे हुए क्यों हैं?
-बीबीसी, घर पर रहने के आदेश वापस लिए जाने लगे हैं और हममें से कई लोग काम पर लौटने लगे हैं. भारत में भी सोमवार से कई आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हो रही हैं. लेकिन सामान्य दिनचर्या को फिर से शुरू करने में आपको घबराहट क्यों है? जब हमें पहली बार अपने घरों तक सीमित किया गया तब हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लौटने के ख़्वाब देखते थे. हम अपने पसंदीदा पब, थिएटर...
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