-सत्यहिंदी, आज जो चीन के सम्पूर्ण बहिष्कार का नारा दे रहे हैं, वे कल तक अफ़सोस कर रहे थे कि चीन ने विकास की जो ऊँचाइयाँ हासिल कर ली हैं, हम उनके क़रीब भी क्यों नहीं पहुँच पाए हैं। कल तक ही क्यों वे आज भी चीन न बन पाने के दुःख से भरे हुए हैं। भारत सरकार की आलोचना करनेवाले हमवतन लोगों को ही वे धमकी देते हैं कि काश...
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कोरोना से निपटने के लिए सरकार ने ईमानदार कोशिश नहीं की
-द वायर, दो महीने के कड़े लॉकडाउन के बावजूद भी आज कोरोना वायरस संक्रमण का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है. लॉकडाउन के दौरान सरकार ने चिकित्सा व्यवस्था में सुधार के कोई प्रयास नहीं किए. इसका नतीजा है कि हर तीन में से दो जिलों के पास आज भी कोरोना जांच का इंतजाम नहीं है. राजधानी दिल्ली के अस्पतालों में भी लोग बेड के अभाव में मर रहे हैं. मजदूरों को अमानवीय क्वारंटीन...
More »किसान हित या खेती का कॉरपोरेटाइजेशन
-आउटलुक, केंद्र सरकार ने हाल में किसानों के उत्पादों की मार्केटिंग के लिए आर्थिक उदारीकरण की दिशा में तीन बड़े सुधार किए हैं। इनमें दो सुधारों के लिए पांच जून को राष्ट्रपति ने अध्यादेश जारी किए, क्योंकि इन फैसलों को कानूनी शक्ल देने के लिए सरकार संसद के सत्र का इंतजार नहीं करना चाहती थी। ये अध्यादेश हैं फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड ऐंड कॉमर्स (प्रमोशन ऐंड फैसिलिटेशन) ऑर्डिनेंस, 2020 और फार्मर्स (एम्पावरमेंट...
More »‘ग़रीबी ऐसी है कि मेरे मरने के बाद परिवार के पास अंतिम संस्कार के पैसे भी नहीं होंगे’
द वायर, ‘उई दिन अच्छे भले उठल रहलन. खाना बनाइके हम पूछलीं कि खा लेईं. बोलनन अभी नाहीं खाइब. नहा के खाइब. नहाइन धोइन अउर बिना कछु कहले बाहर निकल गइन. हम समझी बीड़ी लेवे गइल होइहें. जबसे घर आइल रहिस बहुते कम बाहर जाइस. कभो कभार खाली बीड़ी लेवे बाहर निकलैं. खाना परोस हम राह देख लगौं. देर होके लगी तो पता कइनी कि कहीं भाई के घर त नाहीं...
More »नागरिक को अर्द्ध नागरिक में बदलता समय
-लोकवाणी, लॉकडाऊन के सवा दो माह गुजरने के बाद जब कोई सवाल ये पूछे तो कि देश ने क्या खोया-क्या पाया तो एक खस्ताहाल आम नागरिक का और क्या जवाब होगा भला सिवाय मी’र के इस शे’र के कि ‘उलटी हो गई सब तदबीरें कुछ ना दवा ने काम किया—देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आखिर काम तमाम किया’ ? लॉकडाऊन के बीते दिनों के बारे में बस इतना भर कहा जा सकता...
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