कृषक जातियों में बेचैनी तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि खेती-किसानी अब मुनाफे का काम नहीं रही। उनके बच्चों के पास तकनीकी तालीम भी नहीं है, जिससे वे नए जमाने की नौकरियां पा सकें। ऐसे में राजनीतिक दांव-पेच उन्हें और अधीर कर रहे हैं। जाति-युद्ध की तरफ बढ़ती आग को रोकने के लिए फौरन कदम उठाए जाने चाहिए। हाल के घटनाक्रमों पर पेश है वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी का विश्लेषण पिछले...
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बिहार--शराबबंदी के लिये महिलाएं बनी सरकार की जासूस..
पटना : बिहार की महिलाओं की बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चुभ गयी. सत्ता संभालने के बाद उन्होंने तत्काल शराबबंदी की घोषणा की. प्रथम चरण में 640 विदेशी शराब की दुकानों को शहरी इलाके में खोलने का निर्णय लिया. सरकार के इस फैसले का महिलाओं और आम लोगों ने विरोध शुरू कर दिया. अंत में सरकार को पूरे सूबे में पूर्णतः शराबबंदी की घोषणा करनी पड़ी. गांव, शहर, होटल,...
More »नया बजट और बुजुर्ग आबादी- चंदन श्रीवास्तव
अल्बर्ट आइंस्टीन को याद करते हुए ‘टाइम' मैगजीन में एक चिट्ठी छपी. इसमें लियो मैटर्सडॉफ नाम के सज्जन ने लिखा कि ‘प्रोफेसर आइंस्टीन के अमेरिका आने से लेकर उनकी मृत्यु के साल तक उनके आयकर रिटर्न का ब्यौरा मैं ही तैयार करता था. एक बार प्रिंस्टन स्थित उनके आवास पर मैं आयकर रिटर्न की तफ्सील तैयार कर रहा था. उनकी पत्नी ने आग्रह किया कि दोपहर का खाना मैं उन...
More »ग्रामीण भारत को ‘मेगा पुश’- प्रमोद जोशी
मोदी सरकार ने चार राज्यों के चुनाव के ठीक पहले राजनीतिक जरूरतों का पूरा करनेवाला बजट पेश किया है. इसमें सबसे ज्यादा जोर ग्रामीण क्षेत्र, इंफ्रास्ट्रक्चर, रोजगार और सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों पर है. राजकोषीय घाटे को 3.5 प्रतिशत रखने के बावजूद सोशल सेक्टर के लिए धनराशि का इंतजाम किया गया ोहै. अजा-जजा उद्यमियों के लिए प्रोत्साहन कार्यक्रम भी इसका संकेत देते हैं. बजट का संदेश है कि अमीर ज्यादा...
More »मांग के बहाने जाटों की ये कैसी मनमानी! - संजय गुप्त
हरियाणा में आरक्षण की मांग को लेकर जाट प्रदर्शनकारियों ने जैसा खौफनाक कहर ढाया और आंदोलन के नाम पर जातीय दंगे सरीखे जो हालात उत्पन्न् किए, उसकी जितनी भर्त्सना की जाए, कम है। आरक्षण आंदोलन का ऐसा भयावह हश्र समाज और राजनीतिक दलों के साथ-साथ नीति-नियंताओं को आगाह करने वाला भी है। आरक्षण की जाटों की मांग नई नहीं है। वे 1995 से ही आरक्षण की मांग करते चले आ...
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