अंधाधुंध पेस्टीसाइड्स व फर्टिलाइजर के उपयोग से मिट्टी, पानी व हवा ऊसर होते जा रही है। जहां किसान पहले खेतों में नाइट्रोजन की मात्रा 3-5 किलो प्रति कट्ठा के हिसाब से देते थे, वहीं आज 10-20 किलो प्रति कट्ठा के हिसाब से दिया जा रहा है। इसकी वजह से धरती पर ग्रीन हाउस बन रहा है और ग्लोबल वार्मिंग के खतरे बढ़ रहे हैं। यह परिस्थितिकीय चक्र को प्रभावित कर रहा है। परिणामस्वरूप खेत बंजर हो रहे हैं,...
More »SEARCH RESULT
धरती बचाने का आखिरी मौका हो सकता है यह- अनिल जोशी
पृथ्वी को हमारे शास्त्रों में सबसे पहले नमन किया गया है। गायत्री मंत्र भी इसी से शुरू होता है। पृथ्वी को हमेशा से भारतीय संस्कृति में पूजनीय माना गया है। सैन फ्रांसिस्को के जॉन मेक कोनेला के लिए यह जरूरत नई बात रही होगी, जब उन्होंने पृथ्वी को नमन करने के लिए 21 मार्च को पृथ्वी दिवस मनाने का सुझाव 1969 में यूनेस्को की बैठक में दिया था। बाद में...
More »ग्लोबल वार्मिग से बढ़ा समुद्री स्तर
पचास लाख वर्ष पूर्व ग्लोबल वार्मिग की वजह से अंटार्कटिका का बर्फ पिघला था, जिससे समुद्र का स्तर तकरीबन 20 मीटर तक बढ़ गया था. इंपीरियल कॉलेज, लंदन के शोधकर्ताओं और उनके अकादमिक सहयोगियों ने पूर्वी अंटार्कटिका में बर्फ की चादरों का अध्ययन करने के बाद ऐसा होना मुमकिन बताया है. उन्होंने इस बात का पता लगाया है कि तकरीबन 30 से 50 लाख वर्ष पूर्व की भूगार्भिक अवधि में...
More »उत्तराखंड की चेतावनी- अपूर्व जोशी
जनसत्ता 26 जून, 2013: उत्तराखंड में आई भारी विपदा पर लिखने बैठा, तो एकाएक बाबा नागार्जुन याद आ गए, अपनी एक कविता के जरिए- ताड़ का तिल है/ तिल का ताड़ है/ पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है/ किसकी है जनवरी/ किसका अगस्त है/ कौन यहां सुखी है/ कौन यहां मस्त है/ सेठ ही सुखी है। सेठ ही मस्त है/ मंत्री ही सुखी है/ मंत्री ही मस्त है/...
More »आज के लिए दांव पर कल : केविन रैफर्टी
दुनिया के लिए यह एक चुनौती भरा समय है। आम जनता महंगाई और बेरोजगारी की समस्या से जूझ रही है और व्यवसाय जगत करों की ऊंची दरों और मांग में आई कमी से संघर्ष कर रहा है, क्योंकि उपभोक्ता खर्च करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। वैश्विक बाजार किसी रोलरकोस्टर पर सवार होकर एक संकट से दूसरे संकट तक की यात्रा कर रहा है। यूनान, इटली, यूरो संकट, बलरुस्कोनी का...
More »