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विकास के कोलाहल में- अरविन्द कुमार सेन

देश में सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना (एसइसीसी) के अलग-अलग पहलुओं पर बहस चल रही है। कुछ जानकार इस तथ्य की तरफ इशारा कर रहे हैं कि इस जनगणना ने भारतीय अर्थव्यवस्था के कई स्याह हिस्सों पर रोशनी डाली है। विकास के कोलाहल में स्याह हिस्सों को कोई भी सरकार नहीं देखना चाहती। चाहे वह कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार रही हो, जिसने इस जनगणना के आंकड़ों को जानबूझ कर...

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पर्यावरण के सरोकारों पर एक किताब की गहरी नजर

अगर पर्यावरण के नुकसान को लेकर आपको चिंता होती है लेकिन साथ में आप इस मसले पर मौजूद अध्ययन सामग्री को बोझिल और नीरस जान पढ़ने से बचते हैं तो फिर आपके लिए एक अच्छी खबर है.   हाल ही में जीन कंपेन की तरफ से एक किताब कोपिंग विद् क्लाईमेट चेंज नाम से प्रकाशित हुई है और पर्यावरणविद्, नागरिक संगठन से जुड़े कार्यकर्ता, नौकरशाह तथा शोधकर्ताओं के बीच समान...

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पानी की वैश्विक राजनीति- डा. भरत झुनझुनवाला

पानी की अधिक खपत करनेवाली फसलों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए. गुलबर्गा में रागी, जोधपुर में बाजरा और उत्तर प्रदेश में चावल और गेहूं की खेती करने से हमारे जल संसाधन सुरक्षित रहेंगे और देश की खाद्य सुरक्षा स्थापित होगी. असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया था कि चीन यात्र के दौरान ब्रह्म पुत्र नदी के पानी के बंटवारे के मुद्दे को हल करें. मीडिया रपटों की...

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मोदी सरकार के 1 साल( विशेष आलेख, आलेख प्रभात खबर)

पिछले आम चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी का एक प्रमुख नारा था- ‘सबका साथ-सबका विकास'. अपने इस वादे पर अमल करते हुए सरकार ने पिछले एक साल में आम आदमी की समृद्धि और उन्हें आर्थिक सुरक्षा मुहैया कराने के उद्देश्य से कई नयी योजनाएं शुरू कीं. कुछ पिछली योजनाओं में भी तब्दीली करते हुए उन्हें नये नाम और प्रारूप में शुरू किया गया.  जन-धन, बीमा और पेंशन आदि से जुड़ी...

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किसानों को चाहिए सुरक्षा कवच- बी के चतुर्वेदी

विकट कृषि संकट के चलते किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसे में हमें इस समस्या पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। किसानों के लिए किसी भी तरह के सुरक्षा तंत्र की रूपरेखा उनकी जरूरतों और समस्याओं की समझ पर आधारित होनी चाहिए। ऐसे किसी तंत्र के लिए विभिन्न पहलुओं पर गौर करना जरूरी है। इसमें से पहला यह कि छोटी जोत की खेती के लिए बड़े पैमाने पर...

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