छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुई कथित मुठभेड़ के दौरान 17 नक्सलवादियों को मारने का सीआरपीएफ का दावा समय बीतने के साथ कई सवालों से घिरता जा रहा है. राजकुमार सोनी, बृजेश पांडे और प्रखर जैन की रिपोर्ट. छत्तीसगढ़ के सारकेगुड़ा गांव और उससे जुड़े हुए दो टोलों कोत्तागुड़ा और राजपेटा की पहचान पिछले महीने के आखिरी हफ्ते तक इतनी ही थी कि वर्ष 2005 में जुडूम समर्थकों ने यहां ग्रामीणों के...
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सिंगरौली में संघर्ष जारी है- पुण्य प्रसून वाजपेयी
जनसत्ता 25 मई, 2012: यह रास्ता जंगल की तरफ जाता जरूर है, लेकिन जंगल का मतलब वहां सिर्फ जानवरों का निवास नहीं होता। जानवर तो आपके आधुनिक शहर में हैं, जहां ताकत का अहसास होता है। जो ताकतवर है उसके सामने समूची व्यवस्था नतमस्तक है। लेकिन जंगल में तो ऐसा नहीं है। यहां जीने का अहसास है। सामूहिक संघर्ष है। एक दूसरे के मुश्किल हालात को समझने का संयम है। फिर न्याय से लेकर...
More »नक्सली नहीं आम आदिवासी मारे गए: ग्रामीण
छत्तीसगढ़ में पिछले हफ्ते सुरक्षा बलों के साथ कथित मुठभेड़ों में 19 लोगों के मारे जाने के मामले पर गंभीर विवाद उत्पन्न हो गया है. ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि 28 जून की रात को छत्तीसगढ़ में हुए कथित मुठभेड़ों में मारे गए ज्यादातर लोग आम आदिवासी थे माओवादी नहीं, जबकि राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह और सीआरपीएफ ने इन दावों को सिरे से खारिज किया है. इससे जुड़ी...
More »खबरों का ट्विटरीकरण!- राजदीप सरदेसाई
हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान मैंने बाबा रामदेव, जो टेली-फ्रेंडली योगगुरु के साथ ही अब कालेधन के विरुद्ध मोर्चा खोल लेने वाले आंदोलनकारी भी बन गए हैं, से पूछा कि उनकी संपदा का राज क्या है? उन्होंने तपाक से कहा : ‘इस तरह के प्रश्न क्यों पूछ रहे हो? तुम भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में हमारे साथ हो या दुश्मनों के साथ?’ आह! भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ रहे...
More »हिंसक प्रतिरोध कितना उचित- हर्षमंदर
बहुतेरी संस्कृतियों में अन्याय के प्रतिरोध को सर्वोच्च मानवीय दायित्व का दर्जा दिया गया है। इसी क्रम में एक बहस सदियों से जारी है और आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। यह है अत्याचार और अन्याय के प्रतिरोध में हिंसा की वैधता। सवाल यह है कि अगर राज्यसत्ता के कुछ सशक्त प्रतिनिधि अगर अन्यायपूर्ण हो गए हों तो क्या उनके प्रतिरोध के लिए हिंसा उचित है? दूसरे शब्दों में क्या न्याय के...
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