पिछले शुक्रवार को दिल्ली के प्रेस क्लब में पूर्व मंत्री, लेखक और संपादक अरुण शौरी ने ऐसा क्या कह दिया कि हंगामा खड़ा हो गया? एनडीटीवी पर सीबीआइ के छापों का विरोध करने के लिए हुई पत्रकारों की बैठक में कुलदीप नैयर, प्रणय रॉय, शेखर गुप्ता, राज चेंगप्पा भी बोले थे, लेकिन अरुण शौरी एकमात्र वक्ता थे, जिन्होंने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लिया. उन्होंने अपने भाषण में...
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रोजी बनाम राम- एकै साधे सब सधे--- मुकेश भारद्वाज
सरकार के हर मंच से नोटबंदी को सही बताने के बाद 2016-17 की चौथी तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद दर घट कर 7.1 से 6.1 फीसद पर आ गई। बाजार में तरलता की कमी से मांग घटी और छोटे कारोबारियों की कमर टूट गई। अब जबकि जीएसटी के अमल का समय नजदीक आ रहा है, सरकार जमीनी सच्चाई को नकारते हुए कमजोर अर्थव्यवस्था का ठीकरा...
More »नई संभावना का यूं दिशाहीन हो जाना - अरविंद मोहन
पहले दिल्ली विधानसभा के उपचुनाव और अब दिल्ली नगर निगम चुनावों के नतीजों से एक बात तो शीशे की साफ हो चुकी है कि दो-तीन साल पहले तक एक नए राजनीतिक तूफान की तरह उभर रहे अरविंद केजरीवाल और उनकी आम अदमी पार्टी यानी 'आप की नैया बुरी तरह डांवाडोल है। इसके लक्षण गिनवाने और क्रम निर्धारित करने की जरूरत नहीं है। कुछ दिन पूर्व दिल्ली विधानसभा की राजौरी गार्डन...
More »फिजूलखर्ची से ध्वस्त होती अर्थव्यवस्था-- एस. श्रीनिवासन
मध्य वर्ग अपने राज्य के बजट को आमतौर पर नजरंदाज करता है। उसके लिए यह एक सालाना कवायद है, जो उसके रोजमर्रा के जीवन से बहुत ज्यादा वास्ता नहीं रखती। राजनीतिक टिप्पणीकार और मीडिया भी इसे लेकर एक तरह से उदासीन रहते हैं। मगर राज्य के बजट महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये बताते हैं कि सियासी दलों ने चुनाव के दरम्यान जो वादा किया था, उसे वे पूरा कर रहे हैं...
More »चुनाव से गायब विकास के मसले - संजय गुप्त
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के चार चरण पूरे हो चुके हैं और पांचवें चरण के मतदान की तैयारी है। इस तैयारी के बीच राजनीतिक दलों में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला और तेज होता जा रहा है। विकास और जनहित के मसलों के साथ शुरू हुआ चुनाव प्रचार एक-दूसरे का उपहास उड़ाने और यहां तक कि बेतुके बयानों तक पहुंच गया। हद तब हो गई जब एक-दूसरे पर निशाना साधने के क्रम...
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