एक प्रति-तथ्यात्मक सवाल है- अगर त्रिपुरा में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माक्र्सिस्ट) ने भगत सिंह की मूर्तियां लगाई होतीं, तो क्या होता? क्या माकपा को सत्ता से बाहर कर देने के बाद भाजपाई उनके साथ भी यही सुलूक करते? एक साल पहले एक इतिहासकार मित्र, जो माकपा सदस्य भी हैं और मैं बेंगलुरु में लंच कर रहे थे। कम्युनिस्ट होने से अलग, अच्छे अध्येता, मजाकिया-हाजिर जवाब और क्रिकेट प्रेमी होने...
More »SEARCH RESULT
सामाजिक एका का अधूरा एजेंडा - (कै.) आर विक्रम सिंह
हमारे राजनीतिक परिदृश्य में संभावनाओं, नेतृत्व एवं विकल्पों की बहुतायत है। इस बहुतायत से हम भलीभांति परिचित हैं और साथ ही इससे भी अवगत हैं कि हमारे पास धार्मिक नेतृत्व भी है, जो धर्म एवं हमारी परंपराओं के बारे में मार्गदर्शन देता रहता है। इन दोनों के मध्य एक बहुत बड़ा रिक्त क्षेत्र है, जो समाज का है। अपने यहां सामाजिक नेतृत्व का अकाल-सा है। समाज का एकीकरण किसी का...
More »आधी आबादी का संघर्ष-- डा. अनुज लुगुन
तारीखें कैलेंडर में टंगी चुप्पी साधी चीज नहीं होती हैं, यह तो इतिहास के सबल साजो-सामान और विचार को हमारी आंखों के आगे चस्पा कर उस भार का एहसास दिलाती रहती हैं, जो पूर्वजों के कंधों से होकर हमारे वर्तमान में प्रवेश कर जाती हैं. फर्क इस बात का पड़ता है कि हम यूं ही कैलेंडर के पन्ने पलट देते हैं या उसे पढ़ पाते हैं. ऐसे ही 08 मार्च,...
More »टीवी चर्चाओं के अर्धसत्य और झूठ - मृणाल पाण्डे
शीत सत्र समाप्त हुआ और विपक्ष द्वारा ठप की गई संसद की कार्यसूची में दर्ज तीन तलाक का मुद्दा राज्यसभा में लटका रह गया। हो-हल्ले के चलते लगातार स्थगित किए जाने को मजबूर सदन में मुल्तवी हुई यह बहस, संसद के बाहर खबरिया चैनलों पर आयोजित हुई और दर्शकों का ध्यान खींचती रही। बहस-विमर्श से किसी को खास शिकायत नहीं, लेकिन हर दल, तथाकथित सिविल सोसायटी और बौद्धिक क्षेत्रों के...
More »न इस्तीफा, न किसी की अवमानना! - सुभाष कश्यप
सुप्रीम कोर्ट का संकट अभी तक समाप्त होता नहीं दिख रहा है। इस मामले में सभी तथ्यों को पूरी तौर पर जाने बिना किसी के लिए भी तटस्थता के साथ यह कहना कठिन है कि किसका पक्ष कितना सही है, क्योंकि चार वरिष्ठ न्यायाधीशों की ओर से प्रेस कांफ्रेंस करने और इस दौरान एक लंबी चिट्ठी जारी करने के बाद भी सारी बातें स्पष्ट नहीं हैं। ध्यान रहे कि यह...
More »