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युवा मन को समझने की चुनौती-- आशुतोष चतुर्वेदी

पिछले दिनों सीबीआइ ने हरियाणा के गुरुग्राम में दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले एक छात्र की हत्या के आरोप में स्कूल के ही 11वीं के एक छात्र की गिरफ्तारी कर पूरे देश को चौंका दिया. कुछ दिनों पहले दूसरी कक्षा के छात्र की स्कूल में हुई हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. इसके लेकर धरने प्रदर्शन हुए, कैंडल मार्च हुए और हरियाणा पुलिस ने आनन-फानन...

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नोटबंदी से टूटी है खेती की कमर, बड़े कदम उठाए बिना नहीं बनेगी बात

गुजरे साल 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1,000 रुपए और 500 रुपए के नोट बंद करने का ऐलान कर दिया था. इस फैसले से देश की 86 फीसदी करेंसी अचानक से सिस्टम से बाहर हो गई. इस कदम का मकसद अर्थव्यस्था में मौजूद कालेधन का पता लगाना और इसे खत्म करना था. इसके जरिए देश में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का भी लक्ष्य रखा गया था. हालांकि, इस उपाय...

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नोटबंदी@एक साल: जो पहले 2 महीनों में हुआ, अकेले वही न भूलने वाली त्रासदी है- ज्यां द्रेज

विकास अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज नरेंद्र मोदी सरकार की पिछले साल 500 और 1000 के पुराने नोट बंद करने के फैसले के मुखर आलोचक हैं. उन्होंने चेतावनी दी थी कि 'फलती-फूलती अर्थव्यवस्था में नोटबंदी रेसिंग कार के टायर में गोली मारने जैसा साबित होगा.' एक साल बाद ऐसा लगता है कि उनकी चेतावनी सही साबित हुई है. मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर तीन साल के निचले स्तर...

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मिलीजुली राजनीति में फंसा मोदी का अर्थशास्त्र--- शेखर गुप्ता

जोसेफ हेलर के प्रसिद्ध उपन्यास कैच-22 में लेफ्टिनेंट मायलो माइंडरबाइंडर का चरित्र खुद से कारोबार करके ख्याति अर्जित करता है। वह खुद से इस तरह कारोबार करता कि लेन-देने के चक्र में शामिल हर व्यक्ति को मुनाफा होता, जो अंतत: सरकार की जेब से ही आता है। वह किसी चीज की पूरी सप्लाई खरीद लेता जैसे एक गांव के सारे अंडे, टमाटर खरीद लिए और फिर अपनी ही फौजी यूनिट...

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आर्थिक सुधारों की कठिन राह पर-- एन के सिंह

आर्थिक फैसले पूरी स्फूर्ति से लिए जा रहे हैं। भले ही अभी हम नोटबंदी और जीएसटी की बहस में उलझे हुए हों, मगर हाल ही में सरकार ने अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए कई आर्थिक उपायों की घोषणा की है। ये कई लक्ष्यों को हासिल करने के इरादे सेप्रेरित हैं।   एक कहावत है कि बुराई को मजबूती तब मिलती है, जब हम कोई फैसला नहीं कर पाते या दूसरों...

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