मूडीज की दलील - नीति निर्माताओं को इस भुलावे में नहीं रहना चाहिए कि महंगाई को भड़काए बगैर भी कोई इकोनॉमी 10% की दर से विकास कर सकती है यह बयान क्यों - कुछ सरकारी नीति निर्माता खासकर आरबीआई गवर्नर डी. सुब्बाराव डबल-डिजिट ग्रोथ की वापसी पर विशेष जोर दे रहे हैं पहले क्या हुआ...
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दम तोड़ने की कगार पर मनरेगा
नई दिल्ली। मनरेगा का खाका पेश करने वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य ज्यां द्रेज ने आगाह किया है कि दम तोड़ रही इस योजना को बचाने के लिए जवाबदेही के कठोर कदमों की जरूरत है। मनरेगा को लेकर सरकार में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है, उसे योजना से अब और चुनावी फायदा नहीं दिखता। बेल्जियम में जन्में अर्थशास्त्री द्रेज का यह बयान ऐसे वक्त आया है, जब भ्रष्टाचार की शिकायतों...
More »महिला सशक्तीकरण के वास्ते- केपी सिंह
जनसत्ता 8 मार्च, 2013: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला सशक्तीकरण की बात करना फैशन नहीं, जरूरत है। इक्कीसवीं शताब्दी में भी महिलाएं संविधान-प्रदत्त मूलभूत अधिकारों को पाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं। यह जद्दोजहद नई नहीं, सहस्राब्दियों पुरानी है। मानव-सभ्यता जब पृथ्वी पर पनपने लगी तो पुरुष ने अपनी शारीरिक सामर्थ्य का फायदा उठाते हुए पहला अधिकार स्त्री पर जताया था। महिलाओं के शोषण की कहानी वहीं से शुरू हो...
More »क्या विरोध का ढंग बदल सकता है- गिरिराज किशोर
जनसत्ता 5 मार्च, 2013: इक्कीस-बाईस फरवरी का भारत-बंद लगभग सफल हुआ। उसके लिए श्रमिक संगठनों को बधाई। लेकिन इस महाबंद ने मन में कई सवाल उठा दिए। बंद होते रहते हैं। दो मुख्य तर्क इनके पीछे हैं। एक, मजदूरों या कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा, और दूसरा, अपने अधिकारों की शांतिपूर्ण और सामूहिक अभिव्यक्ति। दोनों बातें अपनी जगह सही हैं। मजदूर के अधिकार का संरक्षण होना जरूरी है। लेकिन असंगठित मजदूर...
More »नकद पैसे का खेल- बनवारी
जनसत्ता 14 फरवरी, 2013: मनमोहन सिंह सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि गरीबी एक आर्थिक और राजनीतिक समस्या के बजाय अब केवल वित्तीय समस्या रह गई है। केंद्र सरकार की प्राथमिक चिंता अब न बेरोजगारी है, न महंगाई। देश की इन दो सबसे बड़ी समस्याओं से मुंह चुराने का उसने एक आसान उपाय निकाल लिया है। देश के गरीब लोगों के हाथ में दमड़ी रख दो; इससे सरकार के कल्याणकारी...
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