पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम आने से एक दिन पहले राहुल गांधी तड़के ही भट्टा पारसौल पहुंच गए थे। उसी दिन उनकी गिरफ्तारी होने तक वे उन लोगों के बीच थे, जो एक तरफ पुलिस व सैन्य बल और दूसरी तरफ भूमि हस्तांतरण के विरोध में प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों के बीच हो रहे संघर्ष में पिस रहे थे। लेकिन इसके बाद जो हुआ, उसमें कुछ भी...
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मेहनतकश की मजदूरी का सवाल : हर्ष मंदर
‘खेतों और फैक्टरियों में काम करने वाले हर मजदूर और कामगार को कम से कम इतना अधिकार तो है ही कि वह इतनी मजदूरी पाए कि अपना जीवन सुख-सुविधा से बिता सके..।’ वर्ष 1929 के लाहौर अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण दे रहे जवाहरलाल नेहरू ने यह बात कही थी। इसके नौ दशक बाद स्वतंत्र भारत की केंद्र सरकार ने कहा कि लोककार्य के लिए कानून द्वारा स्थापित न्यूनतम मजदूरी का भुगतान...
More »धातु से जुड़े विनाश की कहानी : आउट ऑफ दिस अर्थ- सच्चिदानंद सिन्हा
गरीबों के हलके तसले और पतीलों से लेकर विशालकाय वायुयानों की काया बनाने वाले अल्युमिनियम के उत्पादन और विपणन के पीछे घोर शोषण और विध्वंस की जो गाथा छिपी है, उससे हममें से बहुत थोड़े लोग ही वाकिफ होंगे. आधुनिक औद्योगीकरण आदम के आदिम अभिशाप की अभिव्यक्ति भर नहीं है. यह मनुष्य के परिवेश के बार-बार नष्ट होने, इससे विस्थापित होकर आजीविका की तलाश में संसार भर में भटकने और अमानवीय स्थितियों...
More »फ़िर दांव पर कोसी वासियों का जीवन
सुपौल : सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, अररिया, पूर्णिया, कटिहार के लोगों को फ़िर से कोसी के कहर का डर सताने लगा है. कारण भारत-नेपाल के अधिकारियों के बीच मीटिंग का लंबा दौर पर पायलट चैनल का निर्माण नहीं हो सका. अगस्त 2008 की कोसी त्रासदी से बचने के लिए सुझाये तो गये पर उपाय अस्थायी साबित हो रहे हैं. कोसी को नियंत्रित करने के लिए 1955 में वीरपुर से कोपड़िया तक 125 किलोमीटर तथा...
More »लोकतंत्र का लट्ठ- रेयाज उल हक (तहलका)
भट्टा-पारसौल में जो हुआ और जिस अंदाज में हुआ उससे साफ है कि उत्तर प्रदेश सरकार को असहमति और विरोध के लोकतांत्रिक अधिकार की जरा भी परवाह नहीं. रेयाज उल हक की रिपोर्ट अगर यह लोकतंत्र है तो भट्टा-पारसौल के लोगों ने इसका मतलब देखा और महसूस किया है. देश की संसद से बमुश्किल 70 किलोमीटर दूर बसे 6000 जनों की आबादी वाले इस गांव ने लोकतंत्र को गोलियों के रूप...
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