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गरीबी के बारे में डीटन ने बढ़ाई है अर्थशास्त्र की समझ-- रीतिका खेड़ा

अपने पूरे कैरिअर में माप के मसले उनकी चिंताओं के केंद्र में रहे हैं। उनके अनुसार आंकड़ों को बिना सवाल किए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए इस सदी के शुरूआती वर्षों में उन्होंने भारत में मूल्य सूचकांक की गणना की समस्याएं रेखांकित करते हुए यह दिखाया था कि वह कैसे गरीबी संबंधी अनुमानों को प्रभावित करती है। भारत के संबंध में उनका एक और काम गौर फरमाने...

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दिल्ली के विधायक आम आदमी से 10 गुना वेतन पाएंगे!

दिल्ली सरकार ने यदि विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें मानीं तो राजधानी के विधायकों का वेतन आम आदमी के मुकाबले दस गुना हो जाएगा। समिति ने मंगलवार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में विधायकोंका मासिक वेतन वर्तमान में 88 हजार से बढ़ाकर 2.10 लाख रुपये करने की सिफारिश की है। 2014-15 के दौरान दिल्ली में प्रति व्यक्ति सालाना आय 2.41 लाख रुपये थी। इस हिसाब से यहां आम आदमी का औसत मासिक वेतन...

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भारत की कहानी में बिहार कहां है?-- शंकर अय्यर

आज बिहार उम्मीदों और निराशा के दोराहे पर खड़ा है। पिछले कई दशकों से ‌अगर बिहार दुर्दशा झेल रहा है, तो इसकी वजह सिर्फ मंडल, कमंडल और जंगल राज नहीं है। इसकी असल वजह 'राजनीति' है, जिसमें 'राज' कुछ ज्यादा, तो 'नीति' जरूरत से काफी कम रही है। भारत में शासन को लेकर एक बेहद प्रचलित उक्ति है कि यहां वह सब कुछ जो गलत हो सकता है, वह लगातार...

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1 लाख 84 हजार माइनर केस होंगे वापस : बाबूलाल गौर

उज्‍जैन। मध्‍यप्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने कहा कि प्रदेश में तीन साल से कम सजा और जुमाने वाले एक लाख 84 हजार माइनर केस वापस लिए जाएंगे। इससे फायदा होगा कि छोटे कसों में ज्‍यादा समय नहीं बिगड़ेगा और बड़े केसों का निपटारा हो सकेगा। वे उज्‍जैन सिंहस्‍थ के कार्यों की समीक्षा करने पहुंचे थे इस दौरान उन्‍होंने पुलिस कंट्रोल रूम में अधिकारियों की बैठक भी ली। लालू यादव को...

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अति पिछड़ों की राजनीतिक भूमिका-- बद्री नारायण

बिहार में अब सिर्फ दलितों और पिछड़ों की राजनीति नहीं हो रही, इसकी राजनीति का नया रुझान महादलित और अति पिछड़ों से जुड़ा है। ये दो श्रेणियां बताती हैं कि जिन्हें हम दलित और पिछड़े वर्गों की तरह देखते हैं, उनका स्वरूप हर जगह एक सा नहीं है। इन वर्गों के भीतर भी गैर-बराबरी, ऊंच-नीच या भेदभाव है। इसके चलते संसाधनों का समान वितरण नहीं हो पाता। इनके भीतर भी ऐसी...

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