हमारी धरती खुद बीमार चल रही है. यह बीमारी हर दिन गहराती जा रही है. इसकी कई वजहें हैं. ओजोन परत में छेद, आम्लिक वर्षा और आपदाएं भी घी में आग जैसा काम करती हैं. इन सभी कारणों के मूल में सबसे भयावह वैचारिक प्रदूषण है जो आदमी और धरती, खासकर प्रकृति व पर्यावरण के बीच स्थापित संबंधों में विकृति व कटुता पैदा करने में पीछे नहीं है. वस्तुत:...
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किसानों की बदहाली दूर करने के लिए...- शुभ्रता मिश्रा
हिन्दुओं की एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पृथ्वी पर लगातार सौ वर्षों तक वर्षा नहीं हुई थी। अन्न-जल के अभाव में भूख से व्याकुल होकर समस्त प्राणी मरने लगे थे और इस कारण चारों ओर हाहाकार मच गया था। उस समय समस्त मुनियों ने मिलकर देवी भगवती की उपासना की एवम् दुर्गा जी ने शाकम्भरी नाम से स्त्री रूप में अवतार लिया और उनकी कृपा से वर्षा हुई।...
More »संकट में वन्य जीव-- रीता सिंह
वर्ल्ड वाइल्ड फंड एवं लंदन की जूओलॉजिकल सोसायटी की हालिया रिपोर्ट चिंतित करने वाली है कि 2020 तक धरती से दो तिहाई वन्य जीव खत्म हो जाएंगे। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में हो रही जंगलों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले चार दशकों में वन्य जीवों की संख्या में भारी कमी आई है। रिपोर्ट के मुताबिक 1970 से 2012 तक...
More »भूजल की फिक्र किसे है-- दीपक रस्तोगी
विज्ञान पत्रिका ‘नेचर जियोसाइंस' का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि सिंधु और गंगा नदी के मैदानी क्षेत्र का तकरीबन साठ फीसद भूजल प्रदूषित हो चुका है। उसका दावा है कि चार दक्षिण एशियाई देशों में फैले इस विशाल क्षेत्र का पानी न तो पीने योग्य बचा है और न ही सिंचाई योग्य। हालत यह है कि कहीं भूजल सीमा से अधिक खारा हो चुका है तो कहीं उसमें...
More »लुप्त होती तटीय सुरक्षा पंक्ति--- रमेश कुमार दुबे
इस साल अच्छी मानसूनी बारिश से जहां किसानों के चेहरे खिल उठे हैं वहीं देश के कई हिस्से बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। इस बाढ़ की वजह अच्छी बारिश उतनी नहीं है जितनी कि विकास की अंधी दौड़ में पानी के कुदरती निकासी तंत्र को भुला दिया जाना। शहरों का विकास नदियों के बाढ़ क्षेत्रों, तालाबों व समीपवर्ती कृषि भूमि की कीमत पर हो रहा है। शहरों के...
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