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गरीबी के बारे में डीटन ने बढ़ाई है अर्थशास्त्र की समझ-- रीतिका खेड़ा

अपने पूरे कैरिअर में माप के मसले उनकी चिंताओं के केंद्र में रहे हैं। उनके अनुसार आंकड़ों को बिना सवाल किए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए इस सदी के शुरूआती वर्षों में उन्होंने भारत में मूल्य सूचकांक की गणना की समस्याएं रेखांकित करते हुए यह दिखाया था कि वह कैसे गरीबी संबंधी अनुमानों को प्रभावित करती है। भारत के संबंध में उनका एक और काम गौर फरमाने...

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चीन से ऊंची रहेगी भारत की आर्थिक वृद्धि दर : आइएमएफ

वाशिंगटन : अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का मानना है कि 2016 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर अन्य प्रमुख उदीयमान अर्थव्यवस्थाओं से अधिक रहेगी. संगठन ने अगले साल भारत की वृद्धि दर 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है जबकि इस दौरान चीन की वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत रहना अपेक्षित है. आईएमएफ ने यहां जारी नवीनतम विश्व आर्थिक परिदृश्य रपट (अपडेट) में यह अनुमान लगाया है. इसके अनुसार,‘ भारत की...

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सेहत और शिक्षा को न बनाएं धंधा-- राजीव रंजन झा

हम भारतीय आम तौर पर कुछ भी खरीदते हैं, तो मोलभाव जरूर करते हैं. मसलन, सब्जी खरीदनी हो तो जरूर पूछते हैं कि भई 40 रुपये किलो क्यों, बगल में 35 का दे रहा है, 30 की देनी है तो दो. लेकिन अगर कोई आपसे पूछे कि आपकी दो बड़ी ऐसी खरीदारी कौन-सी हैं, जिसमें आपने कोई मोलभाव नहीं किया, तो क्या जवाब देंगे? शायद आप कहेंगे कि सिनेमा टिकट...

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आय में इतनी असमानता क्यों- जयंतीलाल भंडारी

बेशक अभी वैश्विक सुस्ती के बीच भारत की सात फीसदी से अधिक विकास दर चमकती दिखाई दे रही है, लेकिन सामाजिक सुरक्षा के परिदृश्य पर बढ़ती हुई निराशा भी स्पष्ट है। हाल ही में ग्लोबल एचवाच इंडेक्स द्वारा जारी वैश्विक सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट में 96 देशों की सूची में भारत को 71वें स्थान पर रखा गया है। रिपोर्ट में भारत के सामाजिक सुरक्षा परिदृश्य पर चिंता जताई गई है। खासतौर...

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बच्चों की सेहत : कुछ और आगे बढ़े हम-- ज्यां द्रेज

हाल ही में जारी रैपिड सर्वे ऑन चिल्ड्रेन (आरएसओसी) के निष्कर्षों में मुख्यधारा की मीडिया ने कोई खास दिलचस्पी नहीं ली. यह दुखद है, क्योंकि सर्वेक्षण के निष्कर्षों में सीखने के लिए काफी कुछ हैं. तीसरा नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे (एनएफएचएस) करीब दस साल पहले 2005-06 में संपन्न हुआ था. चौथे एनएफएचएस के पूरा होने में लगी भारी देरी से भारत के सामाजिक आंकड़े बहुत पुराने हो गये हैं. सौभाग्य...

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