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सूचना के संजाल में छीजती संवेदना--- दिनेश कुमार

समाज में साहित्य के लिए जगह लगातार कम होती जा रही है। प्राय: ऐसा प्रतीत होता है कि समाज को साहित्य की कोई जरूरत नहीं है। समाज की प्राथमिकता से साहित्य का गायब होना चिंता से अधिक चिंतन का विषय है। साहित्य के नए पाठक बन नहीं रहे हैं और जो पुराने हैं वे धीरे-धीरे विदा हो रहे हैं। हम एक तरह से क्रमश: साहित्य विहीन समाज की ओर बढ़...

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बुजुर्गों के आंसू-- अतुल कनक

सदियों से हमारे यहां मातृशक्ति की पूजा और सम्मान की परंपरा पर गर्व किया जाता रहा है। लेकिन कुछ दिन पहले एक ऐसी घटना घटी कि मैं भीतर तक दहल गया। एक परिचित बुजुर्ग महिला अचानक करीब दो सौ किलोमीटर का सफर तय करके बदहवास हालत में अपने एक रिश्तेदार के घर पहुंची। वह बुरी तरह से दहली हुई थी। सड़सठ वर्ष की उम्र में उन्हें उनके इकलौते जवान पुत्र...

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बच्चियों के जीने लायक बने दुनिया-- डॉ सय्यद मुबीन जेहरा

कुछ मौतों का जिक्र हमारी जबान पर इसलिए नहीं आता है कि हम अब बड़ी-बड़ी मौतों पर चिंतन करनेवाले लोग हो गये हैं और हमारे चिंतन का केंद्र बिंदु भी सिर्फ सियासी हो चुका है. इसमें समाज के लिए न तो पहले जगह थी और न ही अब है और अगर यही हालात रहे, तो आगे भी नहीं होगी! जो समाज अपने बचपन से जुड़ी समस्या को लेकर चिंतित नहीं...

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दो घरों में झूलतीं विवाहिताएं-- मृदुला सिन्हा

पच्चीस से नब्बे वर्ष की विवाहिताओं से मिलते समय मेरा पहला प्रश्न होता रहा है- 'आपका घर कहां है?' करीब 95 प्रतिशत महिलाएं अपना घर, अपने मायके का गांव या शहर बताती रहीं. अविलंब अपना उत्तर सुधार कर कहती हैं- 'मेरी ससुराल का घर फलाने शहर या गांव में है.' यह सच है कि 90 वर्ष की महिलाएं पिछले 70-75 वर्षों से अपने ससुराल में ही हैं. विवाह के...

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मोहनदास से महात्मा तक--- श्रीभगवान सिंह

आमतौर पर यह धारणा प्रचलित है कि गांधीजी को पहली बार ‘महात्मा' से संबोधित किया रवींद्रनाथ ठाकुर ने। लेकिन धर्मपालजी अपनी पुस्तक में बताते हैं कि दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आने पर गांधी को पहली बार ‘महात्मा' के रूप में संबोधित किया गया 21 जनवरी 1915 को, गुजरात के जेतपुर में हुए नागरिक अभिनंदन समारोह में। इसमें प्रस्तुत अभिनंदन पत्र में ‘श्रीमान महात्मा मोहनदास करमचंद गांधी' जैसे आदरसूचक शब्दों...

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