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नवंबर में भी चल रहे पंखे

हिसार. मौसम का मिजाज बिगड़ा हुआ है। नवंबर माह शुरू होने के बाद भी घरों व दफ्तारों में पंखे चल रहे हैं। शहर में न्यूनतम तापमान सामान्य से चार-पांच डिग्री सेल्सियस अधिक चल रहा है। इस वक्त रात को व सुबह जितनी ठंड होनी चाहिए, ठंडक उससे काफी कम है। मंगलवार को भी मौसम में अचानक बदलाव आ गया और आसमान में बादल छा गए। लोगों को आशंका हो गई कि...

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आर-पार से पहले मंझधार- बीटी बैंगन का विवाद

बीटी बैंगन  की खेती को जेनेटिक इंजीनियरिंग  एडवाइजरी कमिटी की हरी  झंडी मिलने के साथ एक बार  फिर आनुवांशिक रुप से प्रवर्धित बीजों के इस्तेमाल का  सवाल मीडिया की सुर्खियों में है।जेनेटिक इंजीनियरिंग एडवाइजरी कमिटी वन और पर्यावरण मंत्रालय से जुड़ी एक नियामक संस्था है। वैज्ञानिक की टोली वाली इस समिति ने पिछले १४ अक्तूबर को बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती को निरापद करार देते हुए हरी झंडी दे दी थी।     बीटी बैंगन की खेती को निरापद करार देने के समिति...

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चावल की कई किस्में गायब

रायपुर. बारिश की कमी के कारण राज्य के ज्यादतर किसान पिछले कुछ सालों से लंबी अवधि के धान नहीं लगा रहे। इसके कारण ‘धान का कटोरा’ कहलाने वाले छत्तीसगढ़ में स्थानीय विशेषता वाली चावल की किस्में धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन का असर इंसान और पशु-पक्षियों के अलावा फसलों पर भी नजर आने लगा है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण राज्य के...

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एक कप काफी के लिए खर्च होता है 140 लीटर पानी

भोपाल. अगर आप सोच रहे हैं कि पानी की बर्बादी को रोककर आप जल संरक्षण में पूरा योगदान दे रहे हैं तो आप गलत हैं। जरा इन आंकड़ों पर नजर डालिए- ब्रैड की एक स्लाइस के उत्पादन में 40 लीटर पानी खर्च होता है, एक कप कॉफी के बनने में 140 लीटर पानी लग जाता है। इसी तरह आप जो जींस पहनते हैं वह 2800 लीटर पानी खर्च कर बनती...

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विलुप्त हो रहे परंपरागत बीजों को बचाने की दरकार

हरित क्रांति की शुरुआत करने वाले नॉर्मन बोरलॉग को हाइब्रिड यानी संकर किस्म के बीज तैयार करने के लिए अक्सर याद किया जाता है लेकिन आज छोटे किसानों के कई ऐसे समूह हैं जो पारंपरिक बीजों की खोज कर रहे हैं। ऐसे बीजों की बुआई कुछ जगहों पर प्राथमिकता के आधार पर होती है और वहां हाइब्रिड बीज का इस्तेमाल नहीं होता है। दो साल पहले छत्तीसगढ़ में भारी बारिश हुई...

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