मृगेंद्र पांडेय, रायपुर। छत्तीसगढ़ में किसानों के फसल बीमा में प्रीमियम की राशि में बीमा कंपनियों ने किसानों को जमकर चूना लगाया है। बीमा कंपनियों ने किसानों से उस जमीन का भी प्रीमियम वसूल लिया, जिस पर खेती ही नहीं की गई है। बीमा कंपनियों ने किसानों की खाली जमीन पर भी धान की फसल खड़ी कर दी और हर एकड़ में दो हजार रुपए काट लिए। बीमा कपंनियों ने इस...
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विकास की नीतियां बदलने का वक्त - यशवंत सिन्हा
भारत में घोषित आर्थिक सुधारों का इतिहास 24 साल पुराना है, लेकिन इन 24 वर्षों में भी सुधारों को लेकर जो विवाद हैं, वे अभी तक समाप्त नहीं हुए हैं। आज भी भूमि अधिग्रहण, श्रम कानून, जीएसटी, डायरेक्ट टैक्स (जैसे गार अथवा पिछली तिथि से लागू होने वाले कर) विदेशी पूंजी निवेश इत्यादि अनेक ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर आज भी कोई सहमति नहीं बन पाई है। जब डॉ. मनमोहन...
More »हमारी संवेदना का अकाल-- योगेन्द्र यादव
अकेले नहीं आता अकाल. पानी, प्रकृति और समाज के देशज चिंतक अनुपम मिश्र के लेख का यह शीर्षक अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है. कुदरत सूखा देती है, अकाल नहीं. हर चौथे-पांचवें साल हमारे देश में बारिश की कमी होती है. लेकिन जरूरी नहीं कि इससे अन्न की कमी हो, पीने के पानी का संकट हो, इंसानों और मवेशियों की जान पर बन आये, खेती-किसानी से जुड़े हर...
More »पीएमओ के निर्देश पर उजागर हुआ खनन विभाग का रिश्वत कांड
जयपुर। राजस्थान सरकार के खान विभाग में ढ़ाई करोड़ के रिश्वत कांड का खुलासा प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर हुआ था। अभी भी कई आइएएस अधिकारी ऐसे हैं जिनकी स्क्रीनिंग पीएमओ करा रहा है। हालांकि राज्य सरकार का दावा है कि भ्रष्ट आइएएस अधिकारी एवं खान विभाग के अन्य अफसरों के खिलाफ कार्रवाई उन्होंने ही कराई है। राज्य के गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि पीएमओ ने नहीं, बल्कि राज्य...
More »हिंदी सम्मेलन में खो गया बहुभाषीय भारत - डॉ अनिल सद्गोपाल
विश्व हिंदी सम्मेलन सरकारी जश्न था। सरकारी जश्नों की तरह यह जश्न भी कुछ मिथकों पर टिका हुआ था। इसका सबसे बड़ा मिथक था कि हिंदी का विकास बहुभाषीय भारत की तमाम समृद्ध भाषाओं को हाशिए पर धकेलकर करना संभव है। कहीं दूर से भी यह संदेश नहीं निकला कि जिस अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ हिंदी संघर्ष कर रही है, उसी के खिलाफ बाकी भारतीय भाषाएं भी जूझ रही हैं...
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