आम आबादी की तुलना में दिव्यांग व्यक्तियों को शिक्षा के अवसर कम हासिल हैं. इस बात के संकेत 2011 की जनगणना के आंकड़ों से मिलते हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक भारत में समझ के साथ लिख और पढ़ पा सकने वाले दिव्यांग लोगों की तादाद केवल 54.7 फीसद है. (इससे सबंधित सारणी के लिए यहां क्लिक करें). 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में दिव्यांग लोगों की तादाद 2.68 करोड़ है. इनमें 1.22...
More »SEARCH RESULT
शहरीकरण से दूर होगी गरीबी?-- अनुपम त्रिवेदी
पिछले महीने पुणे में स्मार्ट सिटी परियोजना का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि शहरीकरण को समस्या नहीं, बल्कि गरीबी दूर करने का एक अवसर माना जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि यदि किसी में गरीबी कम करने की क्षमता है, तो वह हमारे शहर हैं, क्योंकि वहां काम के अवसर हैं. यही वजह है कि गरीब गांवों से निकल कर शहरों में जाते हैं. लेकिन, क्या यह सच...
More »हिमालय का बिगड़ता मिजाज--- ममता सिंह
हिमालय की अनदेखी शुरू से ही हो रही है। बार-बार केंद्र पर निर्भर हिमालयी राज्यों का तंत्र हिमालय की गंभीरता और हिमालय से चल सकने वाली स्थायी जीवन शैली और जीविका को भी भुलाते जा रहे हैं। आयातित परियोजनाओं ने हिमालय में अतिक्रमण, प्रदूषण और आपदा की स्थिति पैदा कर दी है जिसके फलस्वरूप हिमालय टूट रहा है। हिमालय न केवल भारत, बल्कि दक्षिण एशिया के सभी देशों के लिए जल...
More »हिंसा से बेअसर भारतीय मध्य वर्ग-- आकार पटेल
भारत में ऐसे तीन बड़े इलाके हैं, जहां लंबे समय से हिंसक संघर्ष चलता आ रहा है. पहला, जम्मू-कश्मीर है, दूसरा मध्य भारत का आदिवासी क्षेत्र है जो झारखंड, ओड़िशा व छत्तीसगढ़ से जुड़ा हुआ है, और तीसरा हिस्सा पूर्वोत्तर भारत का जनजातीय इलाका है. इन संघर्षों की जमीनी हकीकत को समझने के लिए इसकी प्रकृति से संबंधित कुछ अहम तथ्यों को जानना जरूरी है. उत्तर में जम्मू-कश्मीर की समस्या...
More »बिछड़े सब बारी-बारी, खेती-बारी-- अनिल रघुराज
आखिर कोई कितना इंतजार करता! देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, ‘सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन कृषि नहीं.' मगर, आजादी से लेकर कृषि को इंतजार करते-करते अब सात दशक होने जा रहे हैं. वह अब भी भगवान भरोसे है. इंद्रदेव नाराज, तो सूखे की त्रासदी और खुश तो बहुत बड़े इलाके में बाढ़ की तबाही. जिनके बरदाश्त करने की हद चुक जाती है, वे इस...
More »