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दिल्ली: सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान दो मज़दूरों की मौत, तीन घायल

नई दिल्ली: उत्तर पश्चिम दिल्ली में मंगलवार को एक मकान के सेप्टिक टैंक में उतरने के बाद दो मजदूरों की मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गए. घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है. पुलिस उपायुक्त (रोहिणी) एसडी मिश्रा ने बताया कि यह घटना दोपहर में रोहिणी के प्रेम नगर इलाके में हुई. पांच मजदूर एक पुराने मकान के सेप्टिक टैंक में उतरने के बाद बेहोश हो गए....

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दशकों के हासिल पर ग्रहण-- गौतम भाटिया

एक महिला अपने पुराने संस्थान के शक्तिशाली मुखिया पर उत्पीड़न और शोषण के आरोप लगाती है। आरोप ब्योरेवार हैं, ऑडियो और वीडियो प्रमाण के साथ। संस्थान के प्रमुख अगले ही दिन सुबह अपने दो सहयोगियों के साथ एक विशेष बैठक बुलाते हैं। वह शिकायतकर्ता के चरित्र हनन में लग जाते हैं और इसे संस्थान के विरुद्ध साजिश करार देते हैं। इस कार्य में उन्हें संस्थान के दो बहुत वरिष्ठ अधिकारियों...

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‘सरकार हमें पानी और गंदगी की समस्याओं से आगे बढ़ने दे तो शिक्षा या दूसरी चीज़ों के बारे में सोचें’

वर्तमान चुनावों के संदर्भ में टीवी चैनलों के लिए भले ही हिंदू-मुस्लिम, पाकिस्तान, राष्ट्रवाद, चौकीदार आदि सबसे ज़रूरी मुद्दे हों, पर देश की राजधानी दिल्ली में एक ऐसा इलाक़ा भी है जहां के क़रीब 70 हज़ार लोग पीने के पानी, गंदगी आदि से जुड़ी बुनियादी समस्याओं से आए दिन जूझ रहे हैं. यह इलाका संजय कॉलोनी है, जो दक्षिणी दिल्ली में आने वाले ओखला इंडस्ट्रियल एरिया का हिस्सा है. 1977 में...

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नोटबंदी के दौरान लाई गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के पैसे का क्या हुआ, सरकार को नहीं पता

नई दिल्ली: सोचिए. अगर भारत में गरीब न होते तो क्या होता? कुछ होता या न होता लेकिन इतना तो तय था कि हमारी राजनीति काफी नीरस हो जाती. ये गरीब ही हैं, जिनकी वजह से भारत की राजनीति इतनी दिलचस्प बनी हुई है. चाहे वो इंदिरा गांधी का गरीबी हटाओ का नारा हो या मनमोहन सिंह का मनरेगा हो या फिर नरेंद्र मोदी द्वारा शुरु की गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण...

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वनबंधु कल्याण योजना: 100 करोड़ का बजट घटा कर एक करोड़ किया गया, ख़र्च नहीं हो रही राशि

नई दिल्ली: तारीख पे तारीख. ये अकेला डायलॉग भारतीय न्यायिक व्यवस्था की कहानी बता देता है. ठीक इसी तरह का एक शब्द भारतीय शासन व्यवस्था में काफी प्रचलित है. इस शब्द का नाम है ‘योजना'. सरकारें सोचती हैं कि योजना बना दो, विकास हो जाएगा. योजनाएं बनती हैं, पैसा आवंटित होता है और फिर उसके बाद योजनाओं को स्थानीय अधिकारियों के भरोसे क्रियान्वयन के लिए छोड़ दिया जाता है. पिछले 70 सालों...

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