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विकास की धुंधलाती उम्मीद, विकास व परिवर्तन अभी भी सपना-- तवलीन सिंह

ठीक दो हफ्ते बाद नरेंद्र मोदी लाल किले की प्राचीर से अपना तीसरा भाषण देंगे। इस ऐतिहासिक प्राचीर से जब उन्होंने पहला भाषण दिया था 2014 में, तो उनके शासनकाल की शुरुआत का समय था और यह कहना गलत न होगा कि परिवर्तन और विकास के सपने पर हर भारतीय को विश्वास था। कुछ वामपंथी बुद्धिजीवियों को छोड़ कर हम सबको यकीन था कि मोदी भारत को बदल कर दिखाएंगे।...

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दमन का दंश-- मुकेश भारद्वाज

नवउदारवाद के निजामों ने पिछले ढाई दशकों के दौरान स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के उदारवादी मूल्यों को चुनौती दी। बाजार के हाहाकार में सामंती मूल्यों को ही स्थापित करने की कोशिश की गई। स्त्रियों, दलितों सहित अन्य दमित वर्गों को समझाया गया कि बाजार सारी गैरबराबरी मिटा देगा। गुजरात का विकास मॉडल अभी बाजार में भुनाया ही जा रहा था कि कलक्टर साहब के दफ्तर के आगे और सड़कों पर...

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ये किसके बच्चे हैं-- कैलाशचंद्र कांडपाल

शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों के बीच सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के बारे में कई धारणाएं व्याप्त हैं। एक विशेष धारणा इनके परिवारों को लेकर मौजूद है। इसके तहत यह कहा जाता है कि इनके अभिभावक शिक्षा के प्रति सजग नहीं हैं। ये बच्चे सीखना नहीं चाहते और इनको सिखाना असंभव नहीं तो बेहद चुनौतीपूर्ण है, ये स्कूल में अनियमित रहते हैं आदि। ये बातें...

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नेताओं और अफसरों ने भी सीएनटी एक्ट का उल्लंघन कर खरीदी जमीन

रांची : सीएनटी एक्ट का उल्लंघन कर जमीन खरीदने में राज्य के नेता और अफसर भी शामिल हैं. राज्य के करीब सभी राजनीतिक दलों से संबद्ध नेताओं और सरकार के वरीय अफसरों ने रांची जिले के विभिन्न क्षेत्रों में आदिवासी जमीन खरीदी है. कई नेताओं व अफसरों ने अपने नाम पर भूमि की खरीद की है, तो कई ने रिश्तेदारों के नाम पर. नेताओं व अफसरों...

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शासन की भटकी प्राथमिकताएं-- उर्मिलेश

अपनी हाल की पूर्वी उत्तर प्रदेश यात्रा में मुझे बार-बार इस बात का एहसास होता रहा कि किस तरह हमने अपने वास्तविक मसलों को छोड़ कर अनावश्यक सियासी विवादों को प्राथमिकता में शुमार कर लिया है! यह सिर्फ किसी एक व्यक्ति, एक दल या एक सरकार की बात नहीं है, ऐसा लगता है मानो यह हमारा राष्ट्रीय स्वभाव बन गया है. बड़े राजनीतिक दलों के बड़े पदाधिकारी भी एक-दूसरे को...

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