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क्या मजदूरों के खाते में पहुंच गए 1,000 से 6,000 रुपए?

-डाउन टू अर्थ, कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश भर में किए गए लॉकडाउन के बाद मजदूरों में अफरा तफरी मच गई। इसके चलते सरकार ने तुरत-फुरत में कई घोषणाएं की। इसमें एक घोषणा थी, मजदूरों को आर्थिक सहायता दी जाएगी। लेकिन क्या मजदूरों को यह पैसा मिल पाया, किस कानून के तहत यह पैसा दिया गया, क्या पहले से इस कानून की पालना सही तरीके से...

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लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों के सामने खाने का संकट, मानवाधिकार संगठनों ने मांगा सबके लिए मुफ्त राशन

-गांव कनेक्शन,  "हम अगले 20 दिन क्या, 50 दिन भी यहीं रूक जाएं, लेकिन हमें खाने के लिए राशन-पानी तो मिले," लॉकडाउन बढ़ने के सवाल पर हेमंत पोद्दार कहते हैं। हेमंत (30 वर्ष) बिहार के कटिहार जिले के निवासी हैं और मुंबई के बांद्रा इलाके में रहकर निर्माण मजदूर का काम करते हैं। उनके साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लगभग 600 मजदूर उनके इलाके में रहते हैं, जिसका...

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मजदूर दिवस: क्यों शासन पर भरोसा नहीं कर पाए प्रवासी मजदूर

-डाउन टू अर्थ,  मूलरूप से बिहार के पूर्णिया जिले में रहने वाले सुरेश वर्मा आठ साल पहले बेहतर जिंदगी की तलाश में औद्योगिक नगरी फरीदाबाद आए थे। शुरू में उन्होंने एक फैक्ट्री में नौकरी की लेकिन चार साल पहले फैक्ट्री में छंटनी के कारण उनकी नौकरी चली गई। नौकरी छूटते ही उन्होंने पहले मजदूरी और फिर राजमिस्त्री का काम शुरू कर दिया। लॉकडाउन ने उनका यह काम भी छीन लिया। उनके...

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लॉकडाउन में मनरेगा में काम शुरू, मगर अभी भी मुश्किलें तमाम

-गांव कनेक्शन,  लॉकडाउन में मनरेगा में काम शुरू हो चुका है। सरकार ने ऐसे संकट के समय में ग्रामीण भारत के मजदूरों को 20 अप्रैल से मनरेगा में काम देने की मंजूरी देकर इनकी जिंदगी पटरी पर लाने की कोशिश की है, मगर एक हफ्ते बाद भी बड़ी संख्या में मजदूर काम मिलने की आस लगाये बैठे हैं। "कुछ जगह काम चल रहा है, मगर हमारे यहाँ अभी भी काम शुरू नहीं...

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सरकार जानती है, मजदूर बुरा नहीं मानते। लौट कर आएंगे, और कहां जाएंगे!

-जनपथ, श्रम, उत्पादन और निर्माण की प्रमुख धुरी है. श्रमिकों के बगैर इस दुनिया के गढ़े जाने की कल्पना नहीं की जा सकती. बावजूद इसके, पूंजीवादी व्यवस्था में श्रमिक हाशिये पर हैं. हर आने वाली सरकार ने श्रम कानूनों को लघु से लघुतर बनाया है. कार्यस्थलों पर सुरक्षा व्यवस्थाओं के अभाव में दुर्घटनाओं में मजदूरों का मरना बदस्तूर जारी है. बुनियादी सुविधाओं की मांग, हड़ताल, यूनियन, सब जैसे बीते जमाने की बातें...

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