-डाउन टू अर्थ, “पहले बारिश ने मक्के की फसल खराब की और जो रही बची कसर थी वह मंडी ने पूरी कर दी। फसल की कटाई होने लगी है लेकिन कीमत कम मिलने की वजह से इसे मंडी ले जाने की हिम्मत नहीं हो रही,” यह कहना है मध्य प्रदेश के हरदा जिले के किसान राकेश भावसार का। “अतिवृष्टि से मक्के की फसल ने दाने काफी कम आए। साथ ही, कीड़े लगने...
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कंपनियों ने कॉम्प्लेक्स उर्वरकों के दाम बढ़ाये, एनपीके का बैग डीएपी से 500 रुपये महंगा हुआ
-रूरल वॉइस, बी सीजन की बुवाई के समय किसानों को झटका देते हुए उर्वरक उत्पादक कंपनियों ने एनपीके समेत कई कॉम्पलेक्स उर्वरकों के दामों में 500 रुपये प्रति बैग (50 किलो) से अधिक तक की बढ़ोतरी कर दी है। इसके चलते नाइट्रोजन, फॉस्फेट और पोटाश (एनपीके) के काम्प्लेक्स उर्वरक की कीमतें 1750 रुपये प्रति बैग पहुंच गई हैं। सरकारी उर्वरक कंपनी नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड (एनएफएल) और सहकारी संस्था कृभको का एनपीके...
More »क्या हम भारतीय कृषि क्षेत्र में घटती किसानी आमदन के साक्षी हैं?
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के 77वें दौर के सर्वेक्षण पर आधारित 'ग्रामीण भारत में परिवारों की स्थिति का आकलन और परिवारों की भूमि जोत, 2019', हाल ही में जारी स्थिति आकलन सर्वेक्षण इस तथ्य को स्थापित करता है कि किसान परिवार अपनी आजीविका के लिए 'खेती-बाड़ी से शुद्ध आय' के बजाय मजदूरी पर अधिक से अधिक निर्भर हैं. मार्क्सवादी शब्दावली में, सर्वहाराकरण (एक शब्द जिसे हम निर्वासन के लिए शिथिल रूप से उपयोग कर सकते हैं) उस प्रक्रिया...
More »खरीफ सीजन में बुंदेलखंड के एक गांव को 11 करोड़ का नुकसान, कैसे होगी किसान की आमदनी दोगुनी
-डाउन टू अर्थ, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के बांदा जिले के अधिकांश गांवों में खरीफ की फसल पानी की कमी या अत्यधिक बारिश से बुरी तरह प्रभावित हुई है। सबसे बड़ा झटका तिल की खेती करने वाले किसानों को लगा है। जिले के कुछ गांव तो ऐसे हैं जहां लगभग 100 प्रतिशत किसानों ने तिल की बुआई की थी। बसहरी भी ऐसा ही एक गांव है। डाउन टू अर्थ ने...
More »52 की उम्र में सीखी नयी तकनीक, चीया सीड्स उगाकर कमा रहीं तीन गुना मुनाफा
-द बेटर, कर्नाटक के एचडी कोटे तालुका की आदिवासी महिला, प्रेमा की कहानी काफी दिलचस्प है। वह हमेशा से अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर ही निर्भर थीं। लेकिन जब साल 2007 में राज्य सरकार ने उन्हें नागरहोल जंगल से सोलेपुरा रिज़र्व फॉरेस्ट में बसाया, तब उनके लिए काफी कुछ बदल गया। साल 2007 में पुनर्वास के बाद, प्रेमा को खेती करने की सलाह दी गई। लेकिन प्रेमा के लिए यह सबकुछ...
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