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उत्तर प्रदेश में यमुना नदी में बहती मिली लाशें, कोरोना से मौत की आशंका, लोग करने लगे जल प्रवाह!

-सबरंग इंडिया, रोजाना 4 लाख से ज्यादा का आंकड़ा देश को डरा रहा है वहीं, उत्तर प्रदेश में शहर से गांव तक कोरोना का कोहराम मचा है। रोजाना सैकड़ों मौतों के कारण श्मशान घाट और क्रबिस्तान में लोगों को दाह संस्कार के लिए जगह नहीं मिल रही है। घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। लेकिन दिल दहलाने वाली खबरें हमीरपुर व कानपुर जिलों से आ रही हैं। यहां यमुना नदी में...

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महामारी संकट : समुदाय आधारित भागीदारी बढ़ाने की जरूरत

-आउटलुक, महामारी की दूसरी लहर में पूरे देश में समुदाय सबसे अधिक व्यवहारिक (लचीली) संस्था के रूप में उभरे हैं। भारतीय परंपरा, मूल्य और सांस्कृतिक ताकत ने नई ऊर्जा और नए समूहों को स्वत: रूप से हम सबके सामने मदद के लिए लाकर खड़ा कर दिया है । इन सामुदायिक कार्यों ने ही समाज को राज्य और बाजार की विफलता से निपटने में सक्षम बनाया है। हालांकि इस बीच विभिन्न चिकित्सा...

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भारत की कोविड-19 इमरजेंसी: The Lancet का ताज़ा संपादकीय

-जनपथ, भारत के पीड़ा भरे दृश्‍यों को समझ पाना मुश्किल है। बीती 4 मई तक 20.2 मिलियन से ज्‍यादा कोविड-19 संक्रमण के मामले दर्ज किए गए यानी रोज़ाना का औसत 378000 मामले, जिनमें मौतों की संख्‍या 222000 थी जो जानकारों के मुताबिक वास्‍तविकता से बहुत कम आकलन है। अस्‍पताल मरीज़ों से पटे पड़े हैं, स्‍वास्‍थ्‍यकर्मी पस्‍त हो चुके हैं और संक्रमित हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर ऑक्‍सीजन, अस्‍पताल के बिस्‍तर...

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नया सामाजिक सुरक्षा क़ानून मज़दूरों के हक़ में कितना हितकारी होगा

-द वायर, भारत सरकार ने सितंबर 2020 में लोकसभा में एक कानून पारित किया, जो उन चार कानूनों में से एक है जो मजदूरों के हित में होना चाहिए. वो होगा या नहीं, ये अलग बात है जिसका हम विश्लेषण इस लेख में कर रहे हैं. सामाजिक सुरक्षा कानून 2020 के अतिरिक्त तीन और कानून हैं, जो न्यूनतम मजदूरी, औद्योगिक संबंध और व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा से संबंधित हैं. जी-20 देशों में एक हमारा ही...

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असलियत को कबूल नहीं कर रही मोदी सरकार और भारतीय राज्यसत्ता फिर से लड़खड़ा रही है

-द प्रिंट, क्या भारतीय राज्यसत्ता विफल हो चुकी है? समाचार पत्रिका ‘इंडिया टुडे ’ का ऐसा ही मानना है. लेकिन मैं इसका विनम्रतापूर्वक खंडन करना चाहूंगा क्योंकि अगर ऐसा होता तो वह पत्रिका अपने आवरण पर इस आशय का शीर्षक न लगा पाती और मैं यह स्तंभ न लिख पाता. अगर ऐसा होता तो हम यह न जान पाते कि हम कितनी बुरी तरह विफल हो रहे हैं. जब तक किसी राष्ट्र का...

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