जनसत्ता 2 अगस्त, 2013: नियमगिरि में खनन की इजाजत देने की बाबत सर्वोच्च न्यायालय ने अठारह अप्रैल को दिए अपने फैसले में ग्रामसभा की मंजूरी लेने का आदेश दिया था। इस फैसले और इसके बाद के घटनाक्रम ने जल, जंगल, जमीन पर स्थानीय समुदायों के हक की लड़ाई के कई विरोधाभासों और उपलब्धियों को उजागर किया है। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की मनमानी व्याख्या करते हुए ओड़िशा...
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रावणा तोंडी रामायण- अनुपम मिश्र
जनसत्ता 1 अगस्त, 2013: ये दो बिलकुल अलग-अलग बातें हैं- प्रकृति का कैलेंडर और हमारे घर-दफ्तरों की दीवारों पर टंगे कैलेंडर, कालनिर्णय या पंचांग। हमारे संवत्सर के पन्ने एक वर्ष में बारह बार पलट जाते हैं। पर प्रकृति का कैलेंडर कुछ हजार नहीं, लाख-करोड़ वर्ष में एकाध पन्ना पलटता है। इसलिए हिमालय, उत्तराखंड, गंगा, नर्मदा आदि की बातें करते समय हमें प्रकृति के भूगोल का यह कैलेंडर कभी भी भूलना नहीं...
More »वैश्वीकरण बनाम आदिवासी- हरिराम मीणा
जनसत्ता 29 जुलाई, 2013: भूमंडलीकरण का यह वह दौर चल रहा है जब सारे प्राकृतिक संसाधनों का फटाफट और अंधाधुंध दोहन कर लिया जाए, हो सकता है फिर ऐसा सुनहरा अवसर इन कंपनियों को मिले या न मिले। नई आर्थिक नीति की चरम परिणति जन-विरोधी वैश्वीकरण के रूप में अब सामने आ रही है। बहुराष्ट्रीय निगमों, उनको मॉडल मानने वाले देशी पूंजीपतियों और प्राकृतिक संसाधनों की बंदरबांट में लगे राजनीतिकों,...
More »गांव के हुनर को ऊंची उड़ान
सिरचन के नखरे भी गांव के लोग खुशी-खुशी उठाते थे. उसकी झोपड़ी के आगे ब.डे-ब.डे लोगों की सवारी बंधी रहती थी. लोग उसकी खुशामद करते थे. उसकी इज्जत करते थे. वह न तो साधु था, न साहूकार. न ऊंचे पद पर था, न ऊंजी जाति का. उसकी जाति तो कारीगर की थी. ऐसा कारीगर, जो कुशल था, जिसके हाथ में हुनर था. फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी ‘ठेस’ का यह सेंट्रल...
More »भारत में 17 करोड़ से ज्यादा बच्चों का मुश्किल में जीवन
नई दिल्ली। सरकार अपने कुल खर्च का एक फीसद से भी कम बच्चों के संरक्षण पर खर्च करती है और देश में 17 करोड़ से ज्यादा बच्चे और किशोर कठिन परिस्थितियों में रहते हैं। यह बात गुरुवार को बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने कही। बाल श्रम विरोधी कार्यकर्ता शांता सिन्हा ने यहां प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि बाल एवं किशोर अधिकारों की रक्षा व उनको बढ़ावा देने की खातिर कानूनी और प्रशासनिक ढांचे...
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