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कैसा विकास: अपने बच्चों के लिए पोषक आहार खरीदने में असमर्थ है दुनिया की 42 फीसदी आबादी

-डाउन टू अर्थ, एक ओर तो हम विकास की बड़ी-बड़ी बाते करते हैं वहीं दूसरी ओर देखें तो दुनिया में अभी भी करीब 42 फीसदी आबादी पौष्टिक आहार खरीदने में असमर्थ है। जिसका मतलब है कि 300 करोड़ से ज्यादा लोग अपने और अपने परिवार के लिए ऐसा आहार खरीदने के काबिल नहीं हैं जो उन्हें और उनके बच्चों को पर्याप्त पोषण दे सकता है। यही नहीं खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ)...

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जायज नहीं किसान आंदोलन पर बेहिसाब उम्मीदों का बोझ लादना

-कारवां, साल भर से भी ज्यादा समय हो गया है नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों को पारित किए हुए. लेकिन उनके खिलाफ जारी प्रतिरोध आंदोलन आज के भारत में एक व्यापक और सतत विरोध आंदोलनों में से एक रहा है. अपनी व्यापकता और दृढ़ता के साथ यह आंदोलन विभिन्न समूहों के लिए उम्मीद की किरण लेकर आया और इससे सभी की अपनी-अपनी उम्मीदें रही हैं. इनमें से कई तो उन...

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पीएम मोदी की छवि और भारत के कृषि सुधार को कितना बड़ा धक्का लगा है?

-बीबीसी, एक ओर प्रदर्शनकारी किसान पीएम मोदी के तीन कृषि क़ानूनों को वापस लेने पर जश्न मना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारत के अंदर और विदेश में सुधार समर्थक अर्थशास्त्री उनके फ़ैसले से बेहद निराश हैं. सुधार समर्थक अर्थशास्त्री गुरचरण दास ने बीबीसी हिंदी को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "इस फ़ैसले से मैं बहुत हैरान हूं, दुखी हूं. मायूस हूं. मुझे दुख हुआ क्योंकि ये पंजाब के किसान की जीत...

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राजनीतिक और आर्थिक परिदृष्य पर किसान लॉबी की वापसी

-रूरल वॉइस,  गुरू पर्व के मौके पर 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन विवादास्पद कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा करने के साथ ही यह बात अब साफ हो गई है कि देश के राजनीतिक और आर्थिक परिदृष्य पर किसान लॉबी की वापसी हो गई है। आने वाले दिनों में राजनीति की दिशा के साथ ही आर्थिक नीतियों पर भी इसका असर देखने को मिलेगा। 1991 की आर्थिक उदारीकरण...

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खेती के संबंध में कुछ बड़ी भ्रांतियां और किसान आंदोलन पर उनका प्रभाव

-न्यूजक्लिक, भारतीय खेती के संबंध में अनेक भ्रांतियां हैं, जिन्हें अगर फौरन दूर नहीं किया जाता है तो उनका, तीन कृषि कानूनों के खिलाफ इस समय चल रहे किसान आंदोलन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इनमें पहली भ्रांति तो इस धारणा में ही है कि किसानी खेती पर कार्पोरेट अतिक्रमण तो ऐसा मामला है जो बस कार्पोरेट अतिक्रमणकारियों और किसानों से ही संबंध रखता है। यह गलत है। किसानी खेती...

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