-न्यूजलॉन्ड्री, कोरोना महामारी के लगातार बढ़ते प्रभाव के कारण एक ओर देश की सामाजिक आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति बद से बदतर बनती जा रही है तो दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भरता की घोषणा के द्वारा जनता के प्रति कई जवाबदेहियों से अपने को मुक्त कर लिया है जिसके चलते सभी क्षेत्रों में घोर निराशा का वातावरण छाया हुआ है. आर्थिक मोर्चे पर गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले तथा...
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गरीबों की फिक्र करो
-आउटलुक, महज कुछ महीनों में ही कोविड-19 की महामारी ने समूची दुनिया में उथल-पुथल ला दी। दुनिया भर की सरकारें इस पर काबू पाने मे जुटी हुई हैं। इस संकट में बेरोजगारी बढ़ी है और खाने-पीने और आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई भी बाधित हुई। पूरी दुनिया पर आर्थिक मंदी के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में लोगों का निराश होना स्वाभाविक है। फिर भी यह वक्त मानव जीवन-शैली पर चिंतन...
More »मोदी सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ देशभर में प्रदर्शन
-मीडियाविजिल, केंद्र और राज्य की सरकारों द्वारा कोरोना काल में श्रम कानूनों में किये जा रहे बदलाव और श्रमिकों के अधिकारों को निरस्त करने की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाने की मांग को लेकर मजदूर संघठनों ने देशभर में विरोध प्रदर्शन किया। मजदूर संगठनों ने इस विरोध प्रदर्शन के जरिये कई सरकारों द्वारा काम के घंटे 8 से 12 करने का विरोध किया। मजदूर संगठनों ने रेलवे और कोल इंडिया समेत...
More »क्यों चीन से अचानक व्यापार बंद करने पर भारत को ही ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है
-सत्याग्रह, लद्दाख में गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुए संघर्ष में 20 भारतीय सैनिकों के मारे जाने के बाद देश में चीन खिलाफ भारी नाराजगी है. देश भर में लोग चीन के सामना का बहिष्कार कर रहे हैं. लोग सरकार से भी चीन के साथ व्यापार बंद करने की मांग कर रहे हैं. खुदरा व्यापरियों के संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने चीनी वस्तुओं...
More »टूटी हुई खाद्य प्रणाली और किसानों के लिए फ्री मार्केट का औचित्य?
-गांव कनेक्शन, "1980 के दशक में किसान प्रत्येक डॉलर में से 37 सेंट घर ले जाते थे। वहीं आज उन्हें हर डॉलर पर 15 सेंट से कम मिलते हैं," यह बात ओपन मार्केट इंस्टीट्यूट के निदेशक ऑस्टिन फ्रेरिक ने कंजर्वेटिव अमेरिकन में लिखी है। उन्होंने इस तथ्य के जरिये इशारा किया कि पिछले कुछ दशक में किसानों की आमदनी घटने की प्रमुख वजह चुनिंदा बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बढ़ती आर्थिक ताकत है।...
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