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राज्यों को लुभाने का पैंतरा -- यश गोयल

केंद्र और राज्यों के मध्य बेहतर तालमेल और योजनाओं के क्रियान्वयन के लिये 1990 में अंतर्राज्यीय परिषद का गठन हुआ था। वर्ष 2006 तक इसकी दस बैठकें हो चुकी थीं। गत जुलाई 16 को परिषद की 11वीं बैठक लगभग एक दशक बाद दिल्ली में बिना किसी ठोस निर्णय के पूर्ण हुई। जिसमें कई राज्य शामिल ही नहीं हुए। उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश सरकारों के खिलाफ भाजपा और केंद्र के हस्तक्षेप पर...

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मानसून की गति: कहीं जरूरत से ज्यादा, कहीं बहुत कम- निहार गोखले

अब पूरे देश में मानसून आ चुका है. लेकिन अभी तक यह हर जगह एक समान नहीं पहुंचा है. हमने मध्य प्रदेश, असम और उत्तराखंड में आई बाढ़ की भयावहता देखी है. लेकिन अभी भी गुजरात, बिहार और पश्चिमोत्तर के तमाम स्थानों पर मानसून तय सीमा से काफी पीछे दिखाई दे रहा है. भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक अब तक आठ राज्यों में सामान्य से कम बारिश (20-59 फीसदी के बीच)...

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बिहार व झारखंड के हजारों श्रमिकों ने कश्मीर घाटी छोड़ी

श्रीनगर : कश्मीर में जारी अशांति और कर्फ्यू के चलते आव-अवाम तो परेशान हैं ही, काम के अवसरों की कमी होने से हजारों की संख्या में दूसरे प्रांतों से आये श्रमिकों को देश के अन्य हिस्सों में रोजी-रोटी तलाशने के लिए घाटी छोड़ने को बाध्य होना पड़ा है. बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से काम की तलाश में घाटी आये श्रमिक वापस लौट रहे हैं. दिन ढलने के...

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शहरीकरण से दूर होगी गरीबी?-- अनुपम त्रिवेदी

पिछले महीने पुणे में स्मार्ट सिटी परियोजना का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि शहरीकरण को समस्या नहीं, बल्कि गरीबी दूर करने का एक अवसर माना जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि यदि किसी में गरीबी कम करने की क्षमता है, तो वह हमारे शहर हैं, क्योंकि वहां काम के अवसर हैं. यही वजह है कि गरीब गांवों से निकल कर शहरों में जाते हैं. लेकिन, क्या यह सच...

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बिछड़े सब बारी-बारी, खेती-बारी-- अनिल रघुराज

आखिर कोई कितना इंतजार करता! देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, ‘सब कुछ इंतजार कर सकता है, लेकिन कृषि नहीं.' मगर, आजादी से लेकर कृषि को इंतजार करते-करते अब सात दशक होने जा रहे हैं. वह अब भी भगवान भरोसे है. इंद्रदेव नाराज, तो सूखे की त्रासदी और खुश तो बहुत बड़े इलाके में बाढ़ की तबाही. जिनके बरदाश्त करने की हद चुक जाती है, वे इस...

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