बीते कुछ साल के दौरान आम आदमी शिक्षा के प्रति जागरूक हुआ है, स्कूलों में बच्चों का पंजीकरण बढ़ा है। साथ ही स्कूल में ब्लैक बोर्ड, शौचालय, बिजली, पुस्तकालय जैसे मसलों से लोगों के सरोकार बढ़े हैं। लेकिन जो सबसे गंभीर मसला है कि बच्चे स्कूल तक सुरक्षित कैसे पहुंचें, इस पर न तो सरकारी और न ही सामाजिक स्तर पर कोई विचार हो रहा है। आए दिन देश भर...
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राजनीतिक सुधार से डर किसको?-- उर्मिलेश
जब कभी संसद में गतिरोध, उलझाव व टकराव देखता हूं, तो बहुत हैरान या चकित नहीं होता. अपनी लोकतांत्रिक चुनौतियों की लगातार अनदेखी करते रहने का यह सब नतीजा है. बीते कई दशकों से हमारे नीति-निर्धारक और पार्टी-व्यवस्था के संचालक अपनी अंदरूनी राजनीतिक चुनौतियों को संबोधित करने से लगातार बचते रहे हैं. भारत ने अाजादी के बाद अपनी लोकतांत्रिक यात्रा की शुरुआत बहुत धीर-गंभीर ढंग से की थी. आजादी की...
More »आदिवासियत का पंचशील-- नसीरुद्दीन
किसी खास समाज, समूह या समुदाय को वहां के मजबूत और सत्ता पर पकड़ रखनेवाले लोग किस नजर से देखते हैं, इसे समझने का एक पैमाना यह भी हो सकता है कि ये समूह किन मुद्दों के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं. देश के आदिवासी इलाकों से कुछ-कुछ दिनों पर जद्दोजेहद और जल-जंगल-जमीन की हिफाजत की गूंज सुनाई देती है. ताजा गूंज झारखंड से सुनाई दे रही है. पिछले दिनों...
More »सहकारी संघवाद चलाना मुश्किल -- संदीप मानुधने
आज के राजनीतिक विवादों (विशेषकर नोटबंदी के बाद के संघर्ष) को देखें, तो सवाल उठता है कि भारत संघात्मक है या एकात्मक? इसका विश्लेषण इतिहास, संविधान और आर्थिक वास्तविकताओं को समझने से हो सकेगा. सहयोगी संघवाद (कोआॅपरेटिव फेडेरलिज्म) वह दृष्टिकोण है, जिसमें राष्ट्रीय और राज्य सरकारें साझा समस्याओं को सुलझाने के लिए परस्पर सहयोग करती हैं. इसके सफल परिचालन के लिए शक्तियों का एक संघीय संतुलन निर्मित करना...
More »गेहूं के कर-मुक्त आयात की नीति से मंडराते खतरे-- के सी त्यागी
केंद्र सरकार ने गेहूं के आयात पर लगने वाले ‘आयात शुल्क' को पूरी तरह से खत्म करने का फैसला किया है। यानी गेहूं के आयात पर अब तक लग रहे 10 फीसदी शुल्क को हटा लिया गया है। अब विदेशों से गेहूं आयात करने पर किसी तरह का ‘कर' नहीं लगेगा। कर-रहित आयात को मंजूरी मिल जाने से बाजार में विदेशों से आयातित सस्ते गेहूं की बहुतायत होगी, जिससे देश...
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