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आदिवासी -मूलवासी संगठनों का झारखंड बंद आज

रांची : झारखंड में स्थानीयता नीति की मांग को लेकर विभिन्न आदिवासी मूलवासी संगठनों ने 29 दिसंबर को झारखंड बंद बुलाया है़ इसे लेकर आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच, आदिवासी जन परिषद, कुरमी विकास मोर्चा, केंद्रीय सरना समिति, आदिवासी सरना महासभा समेत विभिन्न संगठनाें ने सोमवार की शाम काे जयपाल सिंह मुंडा स्टेडियम से अलबर्ट एक्का चौक तक मशाल जुलूस निकाला़ सीएम रघुवर...

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उत्तर प्रदेश में भुखमरी का जिम्मेदार कौन?-- ज्यां द्रेज

बुंदेलखंड, या कहें कि यूपी वाले बुंदेलखंड से आ रही खबरें बहुत डरावनी हैं. योगेंद्र यादव के नेतृत्व में स्वराज अभियान के तहत कराए गए एक रैपिड सर्वे के साक्ष्य कहते हैं कि इलाका अकाल की दशा की तरफ बढ़ रहा है. मसलन, सर्वेक्षण में नमूने के तौर पर चुने गए 38 प्रतिशत गांवों में बीते आठ महीने में भुखमरी या कुपोषण से एक ना एक व्यक्ति की मौत हुई है. ग़रीब...

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देश के कई भागों में अब भी जारी है देवदासी प्रथा

आश्चर्यजनक रूप से देश के कई भागों में प्राचीन देवदासी प्रथा अब भी बदस्तूर जारी है। इस बात का पता चलने पर गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को पत्र लिखकर महिलाओं की गरिमा से खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने को कहा है। मंत्रालय ने कहा है कि देवदासी प्रथा का किसी भी रूप में बने रहना पूरी तरह से भारतीय दंड संहिता की धारा 370 व 370-ए का...

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दसवीं कक्षा में पढ़ा रहे आबादी नियंत्रण का तरीका गर्भपात! शिक्षा विभाग विवादों में

रायपुर। बेरोजगारी का कारण महिलाओं का रोजगार पाना, चैप्टर पढ़ाकर विवादों में आया छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग अब एक और नए विवाद में घिर गया है। कक्षा दसवीं की सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में जनसंख्या विस्फोट के उपचार को लेकर गर्भपात के तरीकों को पढ़ाया जा रहा है। हिन्दी माध्यम की पुस्तक में पेज क्रमांक 197 में लिखा गया है- ' भारत में सुरक्षित गर्भपात के लिए आवश्यक अस्पताल और नर्सिंग...

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आधी-आबादी : इंसाफ का इंतजार-- अवनीश सिंह भदौरिया

दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की शिकार निर्भया के मामले में अपराधियों को कमोबेश सजा मिल भी गई, लेकिन इस तरह के तमाम मामलों में आज भी इंसाफ का इंतजार है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लड़कियों की सुरक्षा के जितने भी प्रबंध हैं, वे नाकाफी हैं। लड़कियों, महिलाओं और बच्चियों के लिए दिल्ली या दूसरे राज्य कितने सुरक्षित हैं, इसके जीते जागते उदाहरण प्रतिदिन अखबारों और टीवी चैनलों पर पढ़ने-देखने को...

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