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शिक्षा में संवैधानिक मूल्यों से पलायन-- बीरेन्द्र सिंह रावत/फिरोज अहमद/मनोज चाहिल

नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा अवकाश-प्राप्त कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यन की अध्यक्षता में जो पांच सदस्यीय समिति 31 अक्टूबर 2015 को गठित की गई थी, उसने 30 अप्रैल 2016 को दो सौ तीस पृष्ठों की एक रपट मंत्रालय को सौंपी। यह एक राज ही रहा कि सरकार ने आखिर क्यों उस रपट को सार्वजनिक नहीं किया, जबकि उसकी विषयवस्तु न सिर्फ गोपनीय नहीं...

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आर्थिक विकास के लिए नीतियां जरूरी

वैश्विक होती अर्थव्यवस्था के दौर में समान विकास की अवधारणा मजबूत हो रही है. नीति-निर्माता से लेकर आर्थिक विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि विकास दर जरूरी है, लेकिन बिना आर्थिक असमानता को दूर किये विकास अधूरा है. इस व्यापक सोच के साथ रांची में ‘इंटरनेशनल काॅन्फ्रेस ऑन इन्क्लूसिव एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट इन झारखंड: चैलेंज एंड अपॉर्चुनिटी' विषय पर तीन दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है. पूर्वी भारत...

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बहुत दूर दिखती है मंजिल, सतत विकास सूचकांक में भारत 110वें स्थान पर

सतत विकास वैश्विक सामाजिक प्रगति रिपोर्ट में भारत के 98वें स्थान (133 देशों में) पर होने की निराशाजनक खबर के बाद अब चिंताजनक सूचना यह आयी है कि सतत विकास सूचकांक में हमारा देश 110वें (149 देशों में) पायदान पर खड़ा है. वर्ष 2030 तक गरीबी, भूख, अशिक्षा से मुक्ति के साथ बेहतर पर्यावरण का वैश्विक लक्ष्य पाने के हमारे प्रयासों पर यह एक गंभीर टिप्पणी है. इस रिपोर्ट की मुख्य...

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शहरीकरण से दूर होगी गरीबी?-- अनुपम त्रिवेदी

पिछले महीने पुणे में स्मार्ट सिटी परियोजना का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि शहरीकरण को समस्या नहीं, बल्कि गरीबी दूर करने का एक अवसर माना जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि यदि किसी में गरीबी कम करने की क्षमता है, तो वह हमारे शहर हैं, क्योंकि वहां काम के अवसर हैं. यही वजह है कि गरीब गांवों से निकल कर शहरों में जाते हैं. लेकिन, क्या यह सच...

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सामाजिक न्याय का अधूरा सपना-- प्रमोद मीणा

नौवें दशक के बाद से भारतीय राजनीति में दलित दलों और दलित नेताओं की स्वतंत्र पहचान बनी है और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी का सीधा मौका भी मिला है। पर अब इस प्रश्न पर विचार करने की जरूरत है कि इस पूरे राजनीतिक परिदृश्य को हम किस तरह देख सकते हैं। क्या इसे स्वातंत्र्योत्तर भारत में लोकतंत्र की एक महान उपलब्धि के रूप में...

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