स बार के संसदीय चुनाव में दलित विमर्श हाशिए पर जाता दिख रहा है। एक तो राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में दलित समाज को वंचित श्रेणी में रखकर महिलाओं और अन्य वंचित-शोषित समुदायों के साथ ही प्रस्तुत किया जा रहा है। लिखित और प्रकाशित घोषणापत्रों व प्रचार सामग्रियों में ‘दलित' शब्द की जगह ‘अनुसूचित जाति' और ‘वंचित' जैसे शब्द आने लगे हैं। दलितों के लिए भी अन्य के साथ कुछ...
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बिहार में शिक्षा व्यवस्था की खुली पोल, किसी ने टेबल पर बैठकर तो किसी ने मोबाइल की रोशनी में दी परीक्षा
बिहार के बेतिया में स्नातक पार्ट-2 की एमआईएल की शुक्रवार को हो रही परीक्षा में अफरातफरी मच गई। क्षमता से अधिक परीक्षार्थियों के होने के कारण जहां-तहां छात्रों को बैठा दिया गया। एक-एक बेंच पर पांच-छह परीक्षार्थी बैठे थे। परीक्षा के दौरान बिजली चली गई। इससे परीक्षा हॉल में अंधेरा छा गए। करीब आधा घंटा तक मोबाइल की रोशनी में छात्रों ने परीक्षा दी। कई छात्र-छात्राओं को सफोकेशन होने पर...
More »अनसुनी रह जाती है जिनकी आवाज-- बद्रीनारायण
जनतंत्र में कुछ आवाजें हैं, जो ज्यादा सुनाई देती हैं। महानगर और शहर के बड़े तबके की आवाज तो जनतांत्रिक विमर्श में सुनी ही जाती है, कस्बों, राजमार्गों और मुख्य सड़कों के किनारे के गांवों की आवाज भी कई बार इसमें दर्ज हो जाती है। लेकिन जो अंतरे-कोने में पडे़ हैं, जो नदियों के किनारे के गांव हैं, जो दियारे में बसे गांव हैं, जो पहाड़ों की तलहटियों में और...
More »नागरिकता संशोधन विधेयक: असम आंदोलन में जान गंवाने वालों के परिजनों ने लौटाया सम्मान
गुवाहाटी/अगरतला/इम्फाल: नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 को लेकर उत्तर पूर्व के विभिन्न राज्यों विरोध प्रदर्शन का सिलसिला जारी है. इस कड़ी में बीती 30 जनवरी को असम आंदोलन में लड़ते हुए जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों ने विधेयक का विरोध करते हुए राज्य सरकार द्वारा सम्मान के तौर पर दिए गए स्मृति चिह्न लौटा दिए. वहीं त्रिपुरा के आदिवासी नेता राजेश्वर देब बर्मा ने राज्य के मूल निवासियों के विकास को...
More »जब सोच बदलेगी तो खिलेंगी बेटियां-- रमा गौतम
हमारा समाज बेशक आज मार्डन हो गया है। समाज के लोग यही कहते है कि हमने आज तक बच्चों में कोई फर्क नहीं किया और हमारे लिए तो बेटा-बेटी एक समान हैं। मगर, वास्तविकता कुछ और ही होती है। लड़कों के मामले में हम बहुत खुले विचार रखते हैं। मगर, लड़की की बात आते ही कहीं न कहीं हमारी सोच थोड़ी सिकुड़ जाती है, इसी के चलते सृष्टि को आगे...
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