जन लोकपाल अगर सरकारी लोकपाल नहीं हो सकता और सरकारी लोकपाल का मतलब अगर भ्रष्टाचार का लाइसेंस सरकार के ही पास रखनेवाला है, तो फ़िर अन्ना हजारे का आंदोलन भी अब महज भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मुनादीवाला नहीं हो सकता. क्योंकि सिविल सोसाइटी के लिए जो मुद्दे भ्रष्टाचार के घेरे में आते हैं, सरकार के लिए वह संसदीय व्यवस्था का तंत्र है. शायद इसीलिए पहली बार लोकतंत्र के तीनों पाये चेक एंड बैलेंस...
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शख्शियत बड़ी या संदेश- राजदीप सरदेसाई
‘क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में चुनाव कैसे होते हैं? पिता के लिए शराब, मां के लिए कपड़े और बच्चे के लिए भोजन।’ ‘आखिर इस देश में क्या भ्रष्ट नहीं है? भारत का केंद्रीय व्यसन या दोष भ्रष्टाचार है; भ्रष्टाचार की केंद्रीय धुरी है चुनावी भ्रष्टाचार; और चुनावी भ्रष्टाचार की केंद्रीय धुरी हैं कारोबारी घराने।’ उपरोक्त उक्तियां अन्ना हजारे द्वारा कही गई बातों जैसी लगती हैं। हालांकि ये बातें...
More »हिरना समझ-बूझ वन चरना..- संपादकीय
जिसका शुरू से मुझे डर था, अब वही हो रहा है। लोकपाल के नाम पर उमड़ा अपूर्व जनाक्रोश अब अपूर्व दिग्भ्रम बनता चला जा रहा है। सबसे पहले अन्ना हजारे को ही लें। जब उन्हें अनशन पर बिठाया गया था, तब और अब, जबकि वे लोकपाल विधेयक कमेटी के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य हैं, उनकी अपनी कोई सोच दिखाई ही नहीं पड़ती। उन्हें जो भी तत्काल सूझ पड़ता है, उसे वे अखबारों को...
More »सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराये जाएंगे- अरुंधति रॉय
दंतेवाड़ा को समझाने के कई तरीके हो सकते हैं। यह एक विरोधाभास है। भारत के हृदय में बसा हुआ राज्यों की सीमा पर एक शहर। यही युद्ध का केंद्र है। आज यह सिर के बल खड़ा है। भीतर से यह पूरी तरह उघड़ा पड़ा है। दंतेवाड़ा में पुलिस सादे कपड़े पहनती है और बागी पहनते हैं वर्दी। जेल अधीक्षक जेल में है, और कैदी आजाद (दो साल पहले शहर की पुरानी जेल से करीब 300...
More »कंधे पर रायफल और हाथों में हल
बक्सर [दिलीप कुमार]। 70 के दशक के मध्य में देश में अनाज की कमी को पूरा करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान, जय किसान का नारा दिया था। इस नारे ने देश में ऐसा जोश भरा कि हर शख्स सीमा की रक्षा और धरती मां की सेवा में अपना योगदान देने को आतुर हो उठा। नई पीढ़ी भले ही इस नारे को भूल चुकी हो, लेकिन बक्सर के...
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