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सामूहिकता जब नजीर बन जाए-- रामचंद्र गुहा

अच्छे से बाल बांधकर पीली टी-शर्ट पहने पांच साल की सौम्या कश्यप की फोटो देखकर एकाएक नजरें उसकी बड़ी-बड़ी आंखों पर टिक जाती हैं। सौम्या की गोलमटोल आंखें न जाने दुनिया को खोजने की चाहत बयां करती हैं। फोटो में दिख रही उसकी आंखों की चमक और मासूम चेहरा अब असल जिंदगी में देखने को नहीं मिल पाएगा। दो महीने पहले शनिवार के दिन स्कूल जाते समय वह स्कूल बस...

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नागरिक बनाम मतदाता नागरिक-- अश्विनी भटनागर

अभी हाल में उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनावों के बारे में अलग-अलग शहरों और कस्बों के मतदाताओं से बातचीत की थी कि वे अपना वोट किस आधार पर डालेंगे। लगभग सभी मतदाताओं ने कहा था कि वे अपनी पसंदीदा पार्टी को वोट देंगे, किसी व्यक्ति को नहीं और उनका मत उसी पार्टी को जाएगा, जिससे उनको निजी लाभ मिलने की सबसे ज्यादा संभावना है। बातचीत के दौरन यह...

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अंदेशे के भय से अतिरंजित प्रतिक्रिया - ए. सूर्यप्रकाश

पहली नजर में संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावती के सामूहिक विरोध के पीछे कोई तर्क नजर नहीं आ रहा है। प्रदर्शनकारियों ने स्वयं कबूला है कि उन्होंने अभी तक इस फिल्म को नहीं देखा है, लेकिन उत्तर भारत के राज्यों में खासकर राजपूत समुदाय और अन्य हिंदू जातियों के लोग सड़कों पर आकर फिल्म को प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे हैं। उनकी चिंता इस बात को लेकर ज्यादा...

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क्रांति के विचार में जरूरी क्रांति-- योगेन्द्र यादव

कोई भी व्यक्ति बगैर झूठा बने एक श्रद्धांजलि का लेखन कैसे कर सकता है? बीते सात नवंबर को रूसी क्रांति की शताब्दी मनाते हुए इस प्रश्न ने मुझे परेशान-सा कर दिया. कठिनाई यह नहीं है कि इस क्रांति का पुत्र यानी सोवियत संघ 70 वर्षों का होकर मृत हो गया. कोई भी अमर नहीं होता. समस्या यह भी नहीं कि समाजवादी प्रयोग अंततः विफल रहा. सफलता से सभी चीजों की...

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मातृभाषा से संवरेगा शिक्षा का स्वरूप - एम. वेंकैया नायडू

भाषा समाज की आत्मा और मानवीय अस्तित्व को एक सूत्र में पिरोने वाला धागा है। यह चिरकाल से ही विचारों और भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम रही है। शब्द मानवता के विश्व-दर्शन को निर्धारित करते हैं। हम शब्दों को अर्थों या उन विचारों से अलग नहीं कर सकते, जिन्हें हम दूसरों तक पहुंचाना चाहते हैं। शायद इसीलिए भारत के सुविख्यात महाकवि कालिदास ने अपनी कालजयी काव्यकृति 'रघुवंशम का आरंभ ही...

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