तारीखें कैलेंडर में टंगी चुप्पी साधी चीज नहीं होती हैं, यह तो इतिहास के सबल साजो-सामान और विचार को हमारी आंखों के आगे चस्पा कर उस भार का एहसास दिलाती रहती हैं, जो पूर्वजों के कंधों से होकर हमारे वर्तमान में प्रवेश कर जाती हैं. फर्क इस बात का पड़ता है कि हम यूं ही कैलेंडर के पन्ने पलट देते हैं या उसे पढ़ पाते हैं. ऐसे ही 08 मार्च,...
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आधी-अधूरी स्वायत्तता से साख को आंच -- विश्वनाथ सचदेव
वर्ष 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी, उनके पुत्र राजीव गांधी बंगाल में किसी दूरदराज इलाके में थे। जब उन्हें यह सूचना मिली तो कहते हैं कि उन्होंने तत्काल रेडियो बीबीसी लगाकर सूचना की पुष्टि की थी। इस बात को बीबीसी की विश्वसनीयता के एक उदाहरण के रूप में याद किया जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि विश्वसनीयता के संदर्भ में लंबे अर्से तक बीबीसी द्वारा...
More »बराबरी के दंगल में न आएं स्त्रियां--
पिछले दिनों लड़कियों और महिलाओं द्वारा बीयर पीने पर गोवा के मुख्यमंत्री के वक्तव्य पर आयी लड़कियों-महिलाओं की प्रतिक्रियाएं और तस्वीरों के प्रदर्शन अखबारों में देखकर बहुत पुरानी घटना स्मरण हो आयी. साल 1977 की बात है. मैं बिहार से दिल्ली रहने आयी ही थी. मुझसे 7-8 वर्ष पूर्व दिल्ली आयी एक रिश्तेदार महिला से बात हो रही थी. उसने कहा- ‘मेरी तबियत खराब हो गयी थी. दरअसल होली का...
More »पाठक संख्या की मीनारें-- विनय जायसवाल
भारतीय पाठक सर्वेक्षण के ताजा आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से लगातार ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि टेलीविजन के बाद आॅनलाइन मीडिया और अब सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की वजह से अखबारों की पाठक संख्या में तेजी से गिरावट आएगी, लेकिन इस सर्वेक्षण से साफ है कि भारत में अखबारों की बिक्री लगातार बढ़ रही है। 2014 में अखबार के पाठकों की संख्या...
More »हितों के टकराव और नैतिकता-- वरुण गांधी
साल 1990 की बात है. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के प्रमुख सचिव रहे बीजी देशमुख ने प्रधानमंत्री से पूछा था कि क्या वह सेवानिवृत्ति के बाद एक बड़ी निजी कंपनी में नौकरी कर सकते हैं- उन्होंने दशकों सरकारी नौकरी की थी और चाहते थे कि इजाजत मिल जाये, तो अब बाहर निकलकर कॉरपोरेट भूमिका निभाएं. दरअसल, हितों के टकराव के मुद्दे को स्वाभाविक रूप से भ्रष्टाचार से जोड़कर देखा जाना चाहिए....
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