मेरे स्कूल के दिनों में शायद ही कोई 'कुंजी' के साथ दिखना चाहता था। कुंजी किताबों का सार रूप होती थी, जो यह कहकर बेची जाती थी कि उसे पढ़ना परीक्षा में पास होने की गारंटी है। उसमें आमतौर पर ऐसे सवाल होते थे, जिनके परीक्षा में आने की संभावना होती थी। पिछले 30 वर्षों में यह कुंजी खत्म नहीं हुई है, अलबत्ता उनकी संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है।...
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शहरीकरण से दूर होगी गरीबी?-- अनुपम त्रिवेदी
पिछले महीने पुणे में स्मार्ट सिटी परियोजना का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि शहरीकरण को समस्या नहीं, बल्कि गरीबी दूर करने का एक अवसर माना जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि यदि किसी में गरीबी कम करने की क्षमता है, तो वह हमारे शहर हैं, क्योंकि वहां काम के अवसर हैं. यही वजह है कि गरीब गांवों से निकल कर शहरों में जाते हैं. लेकिन, क्या यह सच...
More »मनमानी फीस वसूलने वाले निजी स्कूलों के खातों की जांच शुरू
मनमानी फीस बढ़ाने वाले निजी स्कूलों के खातों की सरकार ने जांच शुरू कर दी है। अर्नेस्ट एंड यंग फाउंडेशन संस्था के अंतर्गत सूचीबद्ध चार्टर्ड एकाउंटेंसी फर्म इस जांच का काम पूरा करके अगस्त के दूसरे सप्ताह में दिल्ली सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी। मंगलवार को चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि शिक्षा दिल्ली सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। सरकार का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है...
More »हिमालय का बिगड़ता मिजाज--- ममता सिंह
हिमालय की अनदेखी शुरू से ही हो रही है। बार-बार केंद्र पर निर्भर हिमालयी राज्यों का तंत्र हिमालय की गंभीरता और हिमालय से चल सकने वाली स्थायी जीवन शैली और जीविका को भी भुलाते जा रहे हैं। आयातित परियोजनाओं ने हिमालय में अतिक्रमण, प्रदूषण और आपदा की स्थिति पैदा कर दी है जिसके फलस्वरूप हिमालय टूट रहा है। हिमालय न केवल भारत, बल्कि दक्षिण एशिया के सभी देशों के लिए जल...
More »सामाजिक न्याय का अधूरा सपना-- प्रमोद मीणा
नौवें दशक के बाद से भारतीय राजनीति में दलित दलों और दलित नेताओं की स्वतंत्र पहचान बनी है और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी का सीधा मौका भी मिला है। पर अब इस प्रश्न पर विचार करने की जरूरत है कि इस पूरे राजनीतिक परिदृश्य को हम किस तरह देख सकते हैं। क्या इसे स्वातंत्र्योत्तर भारत में लोकतंत्र की एक महान उपलब्धि के रूप में...
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