जिस तरह देश की आबादी बढ़ रही है, हरियाली और खेत कम हो रहे हैं, जल-स्रोतों का रीतापन बढ़ रहा है, हम हर दिन वनस्पति और जंतुओं की किसी न किसी प्रजाति को सदा के लिए खो रहे हैं, खेत और घर में जहरीले रसायनों का इस्तेमाल बढ़ रहा है, भीषण गरमी से जूझने में वातानुकूलित यंत्र और अन्य भौतिक सुखों की पूर्ति के लिए बिजली का इस्तेमाल बढ़ रहा...
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'पंजाब जैसे न हो जाएं MP के हालात, कई क्षेत्रों में विकास दर नीचे'
भोपाल। नीति आयोग ने मप्र सरकार को आईना दिखाते हुए कहा है कि प्रदेश ने कृषि क्षेत्र में भले ही विकास किया हो, लेकिन अन्य क्षेत्रों में प्रदेश राष्ट्रीय औसत से भी पीछे है। नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद्र ने सोमवार को मप्र के विभिन्न विभागों के अधिकारियों के साथ बैठक की। इस दौरान उन्होंने कहा कि मप्र को पंजाब मत बनाइए। यह अच्छी बात है कि कृषि क्षेत्र में...
More »पहाड़ पर लौटी हरियाली-- बाबा मायाराम
मध्यप्रदेश का एक गांव है रूपापाड़ा। यहां पेड़ लगाने की चर्चा गांव-गांव फैल गई है। पहले यहां आसपास गांव के हैंडपंप सूख चुके थे लेकिन जंगल बड़ा हुआ, हरा भरा हुआ तो उनमें पानी आ गया। लोगों के पीने की पानी की समस्या हल हुई। यह झाबुआ जिले की पेटलावद विकासखंड में है। यहां के लोगों को खेती में पानी नहीं है, सूखे की खेती करते हैं,यानी वर्षा आधारित। लेकिन...
More »पूरा गांव लाठी और कुल्हाड़ी से मगरमच्छ भगाकर नदी से भरता है पानी
देवेन्द्र कुमार गौड़, सोईंकलां। रोज सुबह 8 बजे के करीब पूरा गांव खाली बर्तनों के साथ कुल्हाड़ी और लाठियां लेकर पार्वती नदी के किनारे इकट्ठा होता है। इसके बाद कुल्हाड़ी, लाठी या अन्य नुकीले हथियारों से नदी किनारे पानी में हलचल मचाना शुरू करते हैं। जब मगरमच्छ-घड़ियाल भाग जाते हैं तब एक-एक करके खाली बर्तनों को नदी से भरते हैं। पीने के पानी के लिए यह जद्दोजहद श्योपुर तहसील के...
More »भीड़तंत्र से शोरतंत्र तक-- शशि शेखर
पिछले एक हफ्ते से आप सिर्फ बिलखते लोगों की तस्वीरें देख रहे होंगे। गोरखपुर में अकाल काल के गाल में समा जाने वाले नौनिहालों के रोते-चीखते परिजन, नोएडा में जेपी, आम्रपाली सहित तमाम बिल्डर्स के शिकार मध्यवर्गीय लोग, कर्ज-माफी की घोषणा के बावजूद अपनी जान देने पर मजबूर किसान, केरल में सांप्रदायिक हिंसा के शिकार लोगों के परिजन...। क्या गुजरे 70 सालों में हमने यही कमाया है? यह गम और गुबार...
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