जीवनरक्षक दवाओं की कीमतें बढ़ने को लेकर स्वाभाविक ही विपक्षी दलों ने संसद में सरकार को घेरने की कोशिश की है। स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने, सभी तक इनकी पहुंच सुनिश्चित कराने और सस्ती दर पर जीवनरक्षक दवाएं उपलब्ध कराने की मांग लंबे समय से उठती रही है। सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के मकसद से सौ से ऊपर दवाओं को जीवनरक्षक की श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। कई राज्य...
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दवा क्षेत्र में भी चीन की दादागीरी
अमेरिका और यूरोपीय देश ही नहीं भारत में भी दवा क्षेत्र में चीन की दादागीरी खतरनाक रूप में है। इतनी खतरनाक कि एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) ने भी सरकार को अगाह किया है कि समय रहते नहीं चेते तो चीन बड़ा खतरा खड़ा कर सकता है। एनएसए के पास चेतावनी का पर्याप्त कारण है। दरअसल भारत में बनने वाली दवाओं का 90 फीसदी कच्चा माल यानि एपीआई (एक्टिव फार्मास्टियुकल इन्ग्रीडीएंट)...
More »दवा कंपनियों को राहत आम आदमी पर आफत
बीते सोमवार की रात को, दवाओं की कीमतों के नियामक, राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सबको चौंका दिया. उसने उन 108 दवाओं को नियंत्रण से मुक्त कर दिया है, जिन्हें उसने दो महीने पहले ही ‘जनहित' के आधार पर मूल्य नियंत्रण के तहत लिया था. उसने इसकी कोई वजह नहीं बतायी. सिर्फ इतना कहा कि भारत सरकार के रसायन एवं उर्वरक मंत्रलय के...
More »फसल बीमा में 200 करोड़ सीधे बीमा कंपनियों की जेब में
नईदुनिया एक्सक्लूसिव, रायपुर (ब्यूरो)। फसल आधारित बीमा में किसानों की मेहनत की कमाई की 200 करोड़ रु. से अधिक की राशि निजी बीमा कंपनियों की जेब में जाने वाली है। ऐसा सरकार से कृषि ऋण लेने वाले किसानों पर जबरिया लादी गई फसल बीमा योजना की वजह से होने वाला है। इस बात को लेकर किसान खासे चिंतित हैं कि उन्हें बीमा की शर्तों के हिसाब से क्षतिपूर्ति नहीं मिलने...
More »विकास मॉडलों के शोर में गुम मजदूर- रौशन किशोर/जीको दासगु्प्ता
चुनावी बहस-मुबाहिसों में विकास की चर्चा तो खूब है, लेकिन इस विकास का आधार और देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा मजदूर कहीं प्रमुख मुद्दा नहीं है. घोषणापत्रों में श्रमिकों के मसलों को शामिल तो किया गया है, लेकिन उनके लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है. देश में मजदूर वर्ग निरंतर शोषण और दमन का शिकार बनता रहा है. ‘मई दिवस’ के मौके पर मजदूरों से जुड़े मसलों को रेखांकित...
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