आज ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं पुरुषों से किसी भी तरह कम नहीं हैं. वे गांव में भी विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सशक्त पहचान बना रही हैं. गांधी जी के सपनों के अनुरूप वे बुनकरी का काम कर रही हैं. ग्रामीण महिलाओं में हुनर की किसी तरह की कमी नहीं है. अपने इस हुनर के बदौलत सूत कात कर महिलाएं अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं. जिससे वे अपने परिवार का...
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विकास मॉडलों के शोर में गुम मजदूर- रौशन किशोर/जीको दासगु्प्ता
चुनावी बहस-मुबाहिसों में विकास की चर्चा तो खूब है, लेकिन इस विकास का आधार और देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा मजदूर कहीं प्रमुख मुद्दा नहीं है. घोषणापत्रों में श्रमिकों के मसलों को शामिल तो किया गया है, लेकिन उनके लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है. देश में मजदूर वर्ग निरंतर शोषण और दमन का शिकार बनता रहा है. ‘मई दिवस’ के मौके पर मजदूरों से जुड़े मसलों को रेखांकित...
More »कृषि नीति और नीयत का संकट- अविनाश पांडेय समर
आंकड़ों की नजर से देखा जाये, तो भारतीय कृषि सहज बोध को धता बतानेवाली अजूबे सी दिखती है. कुछ इस तरह कि भारत की विकास दर के दहाई पार कर देश को अगली विश्व शक्ति बनाने के सपने दिखाने के ठीक बाद वैश्विक आर्थिक मंदी की चपेट में आते हुए ध्वस्त हो जाने पर कृषि क्षेत्र में सुधार ने ही संभाला था. और यह भी कि कुल आबादी के करीब 67...
More »नवउदारवाद से उपजी चुनौतियां- प्रभात पटनायक
जनसत्ता 22 फरवरी, 2014 : यूपीए सरकार और राजग सरकार और यहां तक कि ‘तीसरे मोर्चे’ की अल्पायु सरकार भी आर्थिक नीतियों के मामले में एक जैसी ही रहीं। आज भी, जब चुनावी विकल्प के रूप में राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी का शोरशराबा हो रहा है, आर्थिक नीतियों के स्तर पर शायद ही कोई बुनियादी फर्क हो। सच्चाई तो यह है कि मोदी खुद इस बात पर जोर देते...
More »कृषि-भूमि और विदेशी निवेश- के पी सिंह
जनसत्ता : शहरी विकास मंत्रालय का प्रस्ताव है कि विदेशी कंपनियों को कृषि-भूमि खरीदने की अनुमति दी जाए ताकि शहरीकरण की प्रक्रिया में विदेशी निवेश हो और विकास रफ्तार पकड़ सके। मंत्रालय की दलील है कि शहरी आवास परियोजनाओं के लिए पहले से ही कृषि-भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है, इसलिए विदेशी कंपनियों को भी इस उद््देश्य के लिए कृषि-भूमि खरीदने की अनुमति देने में कोई हर्ज नहीं है।...
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