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‘माननीयों’ को बस अपनी चिंता-- आशुतोष चतुर्वेदी

सांसदों के वेतन, भत्तों और पेंशन में बढ़ोत्तरी के फैसले और इसके तौर तरीके पर सवाल उठ रहे हैं. देश की सर्वोच्च अदालत ने जब इस पर सवाल उठाया, तो सांसदों को यह नागवार गुजरा और कुछेक सांसदों ने तो न्यायपालिका से दो टूक शब्दों में कहा कि वह अपनी सीमा में रहे. सांसदों की दलील थी कि अपना वेतन-पेंशन बढ़ाने का अधिकार उनके पास है और अदालतें इस विशेषाधिकार...

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विषमता की दुनिया-- धर्मेंन्द्रपाल सिंह

दावोस में विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम) की बैठक से ठीक पहले आर्थिक असमानता पर जारी आॅक्सफेम रिपोर्ट चौंकाती है। ‘एन इकॉनमी फॉर 99 परसेंट' नामक इस रिपोर्ट के अनुसार, आज बिल गेट्स, वारेन बफेट जैसे केवल आठ धन्नासेठों के पास विश्व की आधी गरीब आबादी यानी 3.6 अरब जनता के बराबर धन-दौलत है और एक प्रतिशत अमीरों के कब्जे में 99 फीसद संपत्ति है। यह हालत तब है...

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छत्तीसगढ़--- दफ्तरों में अटैच शिक्षाकर्मी जाएंगे स्कूल

जिला पंचायत सीईओ ने डीईओ, बीईओ समेत अन्य सरकारी कार्यालयों में सालों से जमे शिक्षाकर्मियों का संलग्नीकरण समाप्त करने का आदेश जारी किया है। इससे ऊंची पहुंच वाले शिक्षाकर्मियों में हड़कंप मच गया है। राज्य शासन ने कलेक्टर को पत्र लिखकर सरकारी कार्यालयों में अटैचमेंट समाप्त करने का फरमान जारी किया है। इसके बाद भी ऊंची पहुंच वाले कर्मचारी सालों से अपने मूल पदस्थापना स्थल को छोड़कर मलाईदार जगहों पर पदस्थ...

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आंकड़ों से बाहर अलक्षित स्त्री-श्रम-- सुजाता

पुरानी बॉलीवुड फिल्मों में मां के किरदार को याद करते हुए अक्सर एक चेहरा निरूपा राय जैसी मां का सामने आता है, जो विधवा है, दुखी है, लेकिन स्वाभिमानी है. पति के न रहने पर वह दिन-रात दूसरों के कपड़े सिल कर अपने बच्चों को बड़ा करती है. अचानक यह एहसास होता है कि दुनिया का सारा कारोबार पुरुष के श्रम पर चलता है और स्त्री इसमें केवल मर्द के...

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जीडीपी बनाम भूख सूचकांक-- धर्मेन्द्रपाल सिंह

ताजा विश्व भूख सूचकांक या ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआइ) के अनुसार भारत की स्थिति अपने पड़ोसी मुल्क नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और चीन से बदतर है। यह सूचकांक हर साल अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आइएफपीआरआइ) जारी करता है, जिससे दुनिया के विभिन्न देशों में भूख और कुपोषण की स्थिति का अंदाजा लगता है। आज केवल इक्कीस देशों में हालात हमसे बुरे हैं। विकासशील देशों की बात जाने दें, हमारे देश...

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