अकेले नहीं आता अकाल. पानी, प्रकृति और समाज के देशज चिंतक अनुपम मिश्र के लेख का यह शीर्षक अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है. कुदरत सूखा देती है, अकाल नहीं. हर चौथे-पांचवें साल हमारे देश में बारिश की कमी होती है. लेकिन जरूरी नहीं कि इससे अन्न की कमी हो, पीने के पानी का संकट हो, इंसानों और मवेशियों की जान पर बन आये, खेती-किसानी से जुड़े हर...
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योग ग्लैमरस है, ग़रीब की मौत नहीं?- कुमार केतकर
मौत में कोई ग्लैमर नहीं होता. ख़ासकर ग़रीब झुग्गीवालों की मौत में. मुंबई में झुग्गीवाले भी रहते हैं और करोड़पति भी. आमतौर पर दोनों फ़िल्मों को छोड़कर कहीं और नहीं मिलते. लेकिन यहाँ ऐसे भी माफ़िया करोड़पति भी हैं जो मुंबई की बड़ी झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले अभागे ग़रीबों पर फलते-फूलते हैं. मुंबई की झुग्गियों में 50 लाख से ज़्यादा लोग रहते हैं. इनकी जीवन शैली सहारा मरुस्थल के देशों या सोमालिया...
More »किसान को उसका वेतन आयोग कब- योगेन्द्र यादव
किसान हमें ऐसे याद आता है, जैसे कोई दूर का गरीब रिश्तेदार. हम जानते हैं वह कहीं है, लेकिन मुलाकात कभी खुशी-गमी के मौके पर ही होती है. अंकल जी की मौत का रस्मी अफसोस तो कर लेते हैं, लेकिन यह नहीं पूछते कि तुम्हारी जिंदगी कैसे चल रही है. सवाल नहीं पूछते, चूंकि हम उत्तर नहीं सुनना चाहते. शहरों में रहनेवाले भारत की किसान से मुलाकात किसी बुरी खबर...
More »निम्न दर्जे पर पहुंचती उच्च शिक्षा - फिरोज वरुण गांधी
उन्नीसवीं सदी के लगभग मध्य में स्थापित कलकत्ता विश्वविद्यालय और उसके उत्तरार्ध के इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने देश को नोबेल विजेता और प्रधानमंत्री दिया है। मगर अब इनकी गिनती विश्व रैंकिंग में पहले 400 विश्वविद्यालयों में भी नहीं होती। यहां तक कि ब्रिक्स देशों के शीर्ष 20 विश्वविद्यालयों में हमारी एक भी यूनिवर्सिटी नहीं है। दरअसल, हमारे विश्वविद्यालय ‘उच्च शिक्षा के नगरपालिका स्कूल' में तब्दील हो गए हैं। दूसरी तरफ, अधिकतर...
More »सरकार नहीं, समाज गढ़ता है श्रेष्ठ संस्थान- हरिवंश
अमेरिका के जितने भी महान विश्वविद्यालय हैं, उन्हें बनाने के लिए बड़े-बड़े पूंजीपतियों ने अपनी जिंदगी भर की कमाई लगा दी. एक झटके में करोड़ों डॉलर का दान कर दिया. क्या भारत में पैसेवालों की कमी है? नहीं. फिर क्यों यहां ऐसे संस्थान नहीं खड़े होते? क्यों हम लोग हर चीज के लिए सरकार का मुंह देखते रहते हैं. सरकार अपना काम करे, यह जरूरी है. पर समाज और लोगों की...
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