देश की प्राथमिक शिक्षा में सुधार हो, सरकारें इस मुद्दे पर दशकों से विचार कर रही हैं। लेकिन यह सुधार कैसे होगा, इस पर कभी ईमानदारी से नहीं सोचा गया। यही वजह है कि आजादी के अड़सठ साल बीत जाने के बाद भी सरकारी नियंत्रण वाले प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में न तो शिक्षा का स्तर सुधर पा रहा है और न ही इनमें विद्यार्थियों को बुनियादी सुविधाएं मिल पा...
More »SEARCH RESULT
कुंवारों से ज्यादा शादीशुदा लोग करते हैं आत्महत्या!
इंदौर : आधुनिक भारतीय समाज की जीवनशैली ऐसी हो गयी है कि लोग दबाव में अपना जीवन जीते हैं, परिणाम यह हो रहा है कि खुदकुशी के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. इसमें सर्वाधिक चौंकाने वाली बात यह है कि कुंवारों की तुलना में शादीशुदा लोग ज्यादा आत्महत्या करते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2014 में अपने जीवन का खुद अंत करने वालों...
More »खाद्य सुरक्षा: सुधर सकते हैं फिसड्डी राज्यों के भी हालात- ज्यां द्रेज, रीतिका खेड़ा
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) की दशा ठीक नहीं है। अधिनियम को लागू हुए दो साल होने को आये लेकिन कुछ ही राज्य इसपर अमल कर पाये हैं। बाकी राज्य अब भी पात्र परिवारों की पहचान, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के सुधार तथा अन्य तैयारियों से जूझ रहे हैं। तो भी, हाल के सबूतों से संकेत मिलते हैं कि कुछ राज्य अधिनियम को बेहतर ढंग से लागू कर पाये...
More »सामाजिक न्याय के सवाल- योगेन्द्र यादव
अच्छा हुआ कि देश ने मंडल आयोग की रपट लागू करने की पच्चीसवीं वर्षगांठ को नजरंदाज कर दिया। अच्छा इसलिए नहीं, कि मंडल आयोग की रपट कोई मुसीबत थी, जिसे भुला देना ही भला है। मंडल आयोग देश में सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा और जरूरी कदम था। मगर, इसे बार-बार दोहराना हमें कुछ बासी और अप्रासंगिक सवालों की ओर ले जाता है। आज से 25 साल पहले 7...
More »कैसे रुके संसद में पक्ष-विपक्ष का टकराव? - जगदीप एस. छोकर
संसद के मानसून सत्र में हुए हंगामे और सत्ता-पक्ष और विपक्ष में बढ़ते टकराव से देश बेहद चिंतित है। संसद के पचास साल पूरे होने पर पीए संगमा की अध्यक्षता में हर दल और समूह की सहमति से निर्णय किया गया था कि प्रश्नकाल में व्यवधान पैदा नहीं किया जाएगा। आजादी के 68 साल पूरे होने पर कम से कम यही एक संकल्प सांसद करें तो संसदीय लोकतंत्र में सुधार...
More »